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पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/७१

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दुसरा खण्ड


उसके बेटे हीरासिंह दोनोंको गोलीसे मारदेंगे। फिर ये लोग ध्यानसिंहके पास गये। और उसकी वह काग़ज़ दिखलाया जो शेरसिंह ने उस के मारने के लिये लिख दिया था ध्यानसिंह बहुत घबराया लेकिन जब सिन्धाँवालोंने इन्कार किया कि तेरे लिये हम महाराज ही को मार डालेंगे तब तो उस ने इन के साथ बहुत से वादे किये। इन्हों ने यहां महाराज के मारनेकी भी वही जुगत ठहरायी। कि जो महाराजके सामने ध्यानसिंह को कतल करने के लिये ठहरायी थी। निदान दूसरे रोज़ सिन्धवाले अपनी जागीर को गये। और थोड़ेही दिनों में वहां से पांच छ सौ सवार अच्छे मुस्तइद हथियारों में डूबे हुए मरने मारनेवाले ले आये। ध्यानसिंह तो उन दिनों में बीमारी का बहाना करके अपने घर बेठ रहा था और महाराज बागोंके सेरमें मशगूल थे। वहतारीख़ महीने की पहली थी इसलिये दौर में था महाराज कुश्ती देखकर पहलवानों को इमाम और रूखसत दे रहे थे। कि यकबा- रंगी सिन्धांवालों ने आकर वाह गुरूजी की फ़तह सुनायी। महाराज बहुत मिहर्बानो से उन को तरफ मुतवज्जिह हुए अजीतसिंह ने एक दुनाली बंदूक जिस की हर एक नली में दो दो गोलियां भरी थीं पेश करके हस्ते हुए यह बातकही। कि महाराज देखी चौदह सौ रुपये में कैसी सस्ती एक उ.मदा बंदूक मैंने लोहे अब अगर कोई तीन हज़ार भी देवे तो मैं उस को नहीं देने का। और जब महाराज ने बंदूकलेने के लिये हाथ बढ़ाया अजीतसिंह ने उनकी छाती पर ले जाकर उसे झोक दिया। शेरसिंह गोलियोंके लगतेही बेदम होकर गिर पड़ा। सिफ़ इतना ही जबान से निकलने पाया" एकीद़गा", *कातिल महाराज का सिर काटकर उस जगह पहुंचे जहां महाराज का बड़ा बेटा तेरह चौदह बरस का कुंवर प्रतापसिंहथा। लहनासिंह सिन्धाँवालेने तलवार उठायी कुंवर उसके पैरों पर गिर पड़ा। इस संगदिल ने एकही झटके


  • यानी यह कैसी दग़ाबाज़ी है।