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पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/८३

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दुसरा खण्ड


डलहौसी ने अपने विलायत जाने पर इस बढ़कर ज़यादा उमदा और बिहतर इन्तिज़ाम शायद हिंदुस्तान के ओर किसी हिस्से में नहीं छोड़ा।

सन् १८५२ ई० में बम्ह्रा से दुबारा लड़ाई हुई। और १८५२ ई० अंगरेज़ी अमल्दारी पैगूतक पहुंची। हाल उसका यह है कि सन् १८२६ के अ़हदनामे मुताबिक़ बम्ह्रा के बन्दरोमें अंगरेज़ी सौदागरों की खातिरदारी होनी चाहिये थी। लेकिन अबरंगून के हाकिम ने उनपर जुलम् और सख़्ती करनी शुरू की। लार्ड डलहौसी लड़ना नहीं चाहता था लेकिन जब देखा कि बम्ह्रावाले अक्ल से और उन की राह बतलाना निहायत ज़रूर आठ हज़ार आदमी जेनरल गाडविन के साथ रवाना किये। अप्रेल सन् १८५२ में इन्हों ने बम्र्हांवालों वालों को शिकस्त देकर रंगून और मर्तबान उन से छीन लिया और दिसम्बर में लड़ाई ख़र्च के बदले और आगे की ऐसी हर्कत से रोकने के लिये कोर्ट आफ डेरेकृर्स के हुक्म मुताबिक़ पैगू के सब इलाके अंगरेज़ी अमलदारी में मिल गये गोया.. वहांवालों को दिन फिरे।

याद होगा कि सन १८१८ में अंगरेजों ने सितारा शिवाजी की औलाद कोदेदिया था और सन १८३९ में गद्दीनशीन राजा को ख़ारिज करके उसके भाई को बैठाना पड़ा था। यहभाई सन् १८४८ में लावलद मरा। लेकिनउसनेमरते वक्त एकलड़का गोद लिया था। कोर्ट आफ़डेरेकृर्सकी रायमें अहदनामेमुताबिक़ इस गोद लिये लड़के को गद्दी का हक़ नहीं पहुंचता था। पस रअय्यत के फाइदे की नज़र से लार्ड डलहौसी ने उस लड़के का अच्छा पिंशन मुकर्रर करके सितारा ले लिया।

इसी तरह सन १८५३ में राजा के मरने पर नागपुर ज़ब्ती १८५३ ई० में आया। इसने कोई लड़का गोद नहीं लिया था तमाम इलाके में अंधेरखाता मच रहा था।

झांसी की ज़ब्ती का भी ऐसा ही सबब हुआ शिवराव भाऊ के साथ जो वहां पेशवा की तरफ से था सन १८०४ में

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