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पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१७८

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अम्मिला सब (१०५) चराचर मे सनेह भर गया, शूल झर गया, क्लेश डर गया, भर गया है प्राकठ सनेह, बह उठा प्रेमल निझर नया, चराचर सब प्राप्लावित हुए मुए भेद-भाव-दुख-भोग चिरन्तन नेह बरसने लगा, न क्लेश, न मोह, न शोक, न रोग, गूंज उट्ठा हिय-रजन गान, छिड गई आत्मनिवेदन तान', हो गया जीवन का सम्मान, हृदय का हुआ दान-प्रतिदान । (१०६) नयन से नयन, अधर से अधर, मिले हिय से यि अति स्वच्छन्द, प्राण में रमे पान कर प्राण, छलक उवा नव परमानन्द, रक्त में रक्त मिट गई वह भावना विरक्त, ऊम्मिला हुई लखन-आसक्त, सुलक्ष्मण हुए अम्मिला-भक्त, रमण-परिम्भण, रजन-रास, नाचने लगा हृदय-उल्लास, कुछ हुआ ऊवं श्वास-निश्वास, प्रकट कुछ हुआ रास-प्रायास । मिला अनुरक्त, १६४