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पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६०८

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अम्मिला शासन? १५३ "भाभी," यो श्री लक्ष्मण बोले, विहँस मधुर वचनावलियों, "भाभी, यदि ऐसी ही भोली होती ये विदेह ललियों, यदि, यो सहज छोड देती ये रघुकुलजो का हिय-आसन, तो क्यो आज लक मे होता बन्धु विभीषण का बाँध दाशरथियो को रखती है विदेह की नन्दिनियाँ, बडी चतुर हो तुम मैथिलियाँ, हो तुम सब मायाविनियाँ । १५४ कैसा लक झरोखा, भाभी? और कहाँ की वनबाला ? क्यो भटके वह, जिसन पहनी-- श्री मिथिला की वरमाला "पर लालन, एकाधिकता तो है रघुकुल की रीति, अहो," "यदि भाभी को सौत चाहिए, तो अग्रज से कहूँ, कहो ?" "अपनी चिन्ता करो, ललन है." "पर, पथ दर्शक तो है वे," "पर उस शर्पणता के मन के चिर आकर्षक तो है ये।" ५६४