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पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/४

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निवेदन

नाटक प्रेमीवृन्द ।

'श्रीसूरविजय नाटक समाज' के मालिक श्रीयतलबजो और डाइरेक्टर श्रीयुत भगवानजी भी बड़े जबर्दस्त आदमी है। गतवर्ष जब 'सूरविजय' बरेली में आई तो २० दिनही में उन्होंने मुझले यह नाटक 'स्टेज करने के वास्ते' लिखवा लिया।

बारा यह हुई कि मेरे श्रद्धास्पद, ऋषिकुल हरिद्वार के संस्थापक, महामहोपदेशक रायसाहब श्रीयुत दुर्गादत्तजी पन्त श्रानरेरी मजिस्ट्रट काशीपुर (जिन्हें मैं बचपन से 'चाचाली कहता हूँ) उन्हीं दिना बरेली भाग गये। इस नाटक का कथानक उन्हीं ने कुछ लिखा था, परन्तु उनका वह लेख साहित्य के क्षेत्र का थो, नाटक के स्टेज का नहीं। उन्होंने मुझे आशा दी कि में उसे नाटक के रूप में लाऊँ और 'सरविजय में स्टेज कराऊँ । इधर उनकी आज्ञा मैंने शिरोधार्य की और उधर सूरविजय के मेरे उपरोक्त प्रेमियों के प्रेम ने मुझे परास्त किया, परिणाम यह हुआ कि खेलही खेल में यह एक खेल तैयार होगया।

सच पूछिए तो इस नाटक की तरफ ध्यान दिलाने, इसे लिखवाने, खिलवाने यहाँतक कि प्रकाशित करने तक का श्रेय चाचाजी (इसजगह 'पन्तजी न लिखकर चाचाजी ही लिखता