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पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/४८

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छठा दृश्य

[मिहन्त माधोदास के साथ साथ गोमतीदास, सरयूदास, कौशिकीदास,आदि २ शिष्यगण अंदर से “संध्या भारती की जय जय सीताराम" कहते हुए पाते है]

माधोदास--[बाहर आकर] आओ भैया गोमतीदास, कौशिकीदास, सरयूदास, आयो। भारतीजी होचुकी, अब सत्संगजी होता है।

सरयू०--जो आज्ञा।

कौशिकी०--गुरुजी, रामजी की नारी मंदोदरी थी न ?

माधो०--हां बच्चा कौशिकीदास । शैव सम्प्रदाय में एक रामजीदास रावण हुआ जिसके अनेकन भाई हुए । जिनके नाम कुम्भकरण, मेघनाद, विभीषण, अहिरावण, महिपासुर श्रादि थे।

गोमती०--गुरुजी, महिषासुर तो रामावतार मे नहीं था।

माधो०--नहीं भाई तुम नहीं समझे । विष्णुजी ने रामजी का अवतार धर के महिषासुर को मारा है। रामजी और विष्णुजी दोनों एक ही हैं । शास्त्र का ऐसा ही वचन है । हमने अक्षर थोड़े ही पढ़े हैं, यह तो राम खुरपा से अनुभव होगया है। रामाणजी में लिखा है-“करोति सुलमं सर्वरामस्य महती खुरपा"-इसका अर्थ बड़े २ शास्त्री, महात्मा और पण्डित भी नहीं जानते । यह तो केवल गुरुमुख से ही प्राप्त होता है। बाल का आदि, अयोध्या का मध्य और उत्तर का अन्त, जो जाने वह पूरा सन्त । सुनो प्रथम इसी सल्लोक का अर्थ सुनाया जाता है।