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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/१८

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आदमियों को बीरसिंह ने जान से मार डाला और सिर्फ एक भाग कर बच गया । जब हम लोग बीरसिंह को बुलाने के लिये उनके बाग की तरफ जा रहे थे उस समय यह हाल उसी की जुबानी मालूम हुआ था । इस समय वह आदमी भी जिसका नाम रामदास है, ड्योढ़ी पर मौजूद है ।

महा० : हा ! क्या ऐसी बात है ?

हरी० : मैं महाराज के कदमों की कसम खाकर कहता हूं कि यह हाल खुद रामदास ने मुझसे कहा है ।

जिस समय हरीसिंह ये बातें कह रहा था, महाराज की निगाह कुंअर साहब की लाश पर थी । यकायक कलेजे में कोई चीज नजर आई, महाराज ने हाथ बढ़ा कर देखा तो मालूम हुआ, छुरी का मुट्ठा है जिसका फल बिलकुल कलेजे के अन्दर घुसा हुआ था । महाराज ने छुरी को निकाल लिया और पोंछ कर देखा । कब्जे पर 'राजकुमार बीरसिंह' खुदा हुआ था ।

अब महाराज की हालत बिलकुल बदल गई, शोक के बदले क्रोध की निशानी उनके चेहरे पर दिखाई देने लगी और होंठ काँपने लगे । बीरसिंह ने चौंक कर कहा, "बेशक, यह मेरी छुरी है, आज कई दिन हो गये, चोरी गई थी । मैं इसकी खोज में था मगर पता नहीं लगता था ।"

महा० : बस, चुप रह नालायक ! अब तू किसी तरह अपनी बेकसूरी साबित नहीं कर सकता !! हाय, क्या इसी दिन के लिए मैंने तुझे पाला था ? अब मैं इस समय तेरी बातें नहीं सुना चाहता ! (दर्वाजे की तरफ देख कर) कोई है ? इस हरामजादे को अभी ले जाकर कैदखाने में बन्द करो, हम अपने हाथ से इसका और इसके रिश्तेदारों का सिर काट कर कलेजा ठंडा करेंगे ! (हरीसिंह की तरफ देख कर) तुम सौ सिपाहियों को लेकर जाओ, इस कम्बखत का घर घेर लो, और सब औरत-मर्दो को गिरफ्तार करके कैदखाने में डाल दो ।

फौरन महाराज के हुक्म की तामील की गई और महाराज उठकर महल में चले गये ।