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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/३४

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सेनापति नहीं है । दूसरे यह करनसिंह सेनापति का लड़का जिसकी उम्र पन्द्रह वर्ष की हो चुकी थी इस काम में बाधक होगा और नेपाल में सबर कर देगा जिससे जान बचनी मुश्किल हो जाएगी । तीसरे, खुद करनसिंह की मुस्तैदी से वह और भी काँपता था ।

जब करनसिंह रास्ते ही में थे तब ही खबर पहुँची कि हरिपुर का तहसीलदार मर गया । एक दूत यह खबर लेकर नेपाल जा रहा था जो रास्ते में करनसिंह सेनापति से मिला । करनसिंह ने राठू के बहकाने से उसे वहीं रोक लिया और कहा 'कि अब नेपाल जाने की जरूरत नहीं है ।

अब करनसिंह राठू की बदनीयती है और भी जोर मारा और उसने खुद हरिपुर का मालिक बनने के लिए यह तरकीब सोची कि करनसिंह सेनापति के साथियों को बड़े-बड़े ओहदे और रुपये की लालच से मिला ले और करनसिंह को मय उसके लड़कों और लड़की के किसी जंगल में मारकर अपने ही को करनसिंह सेनापति मशहूर करे और उसी परवाने के जरिये से हरिपुर का मालिक बन बैठे, मगर साथ ही इसके यह भी खयाल हुआ कि करनसिंह के दोनों लड़कों और लड़की के एक साथ मरने की खबर जब नेपाल पहुँचेगी तो शायद वहाँ के राजा को कुछ शक हो जाय इससे बेहतर यही है कि करनसिंह सेनापति और उसके बड़े लड़के को मार कर अपना काम चलावे और छोटे लड़के और लड़की को अपना लड़का और लड़की बनावे क्योंकि ये दोनों नादान हैं, इस पेचीले मामले को किसी तरह समझ नहीं सकेंगे और हरिपुर की रिआया भी इनको नहीं पहिचानती, उन्हें तो केवल परवाने और करनसिंह नाम से मतलब है । आखिर उसने ऐसा ही किया और करनसिंह सेनापति के साथी सहज ही में राठू के साथ मिल गए ।

करनसिंह राठू ने करनसिंह सेनापति को तो जहर देकर मार डाला और उसके बड़े लड़के को एक भयानक जंगल में पहुँचकर जख्मी करके एक कुएं में डाल देने के बाद खुद हरिपुर की तरफ रवाना हुआ । रास्ते में उसने बहुत दिन लगाए जिसमें करनसिंह सेनापति का छोटा लड़का उससे हिल-मिल जाए ।

हरिपुर में पहुँच कर उसने सहज ही में वहाँ अपना दखल जमा लिया करनसिंह सेनापति के लड़के और लड़की को थोड़े दिन तक अपना लड़का और लड़की मशहूर करने के बाद फिर उसने एक दोस्त का लड़का और लड़की मशहूर किया । उसके ऐसा करने से रिआया के दिल में कुछ शक पैदा हुआ मगर वह