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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/४०

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शरीक थे । सभी को निश्चय हो गया कि असल में यह गद्दी बीरसिंह की है । बीरसिंह यदि लड़ने के लिए मुस्तैद हों तो वे लोग उनकी मदद करने को तैयार हैं ।

एक लौंडी : आपने भी कोई बन्दोबस्त किया है या नहीं ?

बाबू साहब : हाँ, मैं भी इसी फिक्र में पड़ा हुआ हूँ । मगर लो देखो, रामदीन आ पहुँचा ।

रामदीन ने पहुँच कर खबर दी कि महाराज चले गए अब आप जायें । रामदीन ने उस कोठरी में एक छोटी-सी खिड़की खोली जिसकी ताली उसकी कमर में थी और तीनों को उसके भीतर करके ताला बन्द कर दिया और आप बाहर बैठा रहा । बाबू साहब ने दोनों लौंडियों के साथ खिड़की के अन्दर जाकर देखा कि हाथ में चिराग लिए एक लौंडी इनके आने की राह देख रही है । यहाँ से नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं । लौंडियों के साथ बाबू साहब नीचे उतर गए और एक कोठरी में पहुँचे जिसमें से होकर थोड़ी दूर तक एक सुरंग में जाने के बाद एक गोल गुमटी में पहुँचे । वहाँ से भी और नीचे उतरने के लिए सीढियाँ बनी हुई थीं । बाबू साहब फिर से नीचे उतरे, यहाँ की जमीन सर्द और कुछ तर थी । पुनः एक कोठरी में पहुँच कर लौंडी ने दर्वाजा खोला और बाबू साहब को साथ लिए एक बारहदरी में पहुँची । इस बारहदरी में एक दीवारगीर और एक हाँडी के अतिरिक्त एक मोमी शमादान भी जल रहा था । जमीन पर फर्श बिछा हुआ था, बीच में एक मसहरी पर बारीक चादर ओढ़े एक औरत सोई हुई थी, पायताने की तरफ दो लौंडियाँ पंखा झल रही थीं, पलंग के सामने एक पीतल की चौकी पर चाँदी की तीन सुराही, एक गिलास और एक कटोरा रक्खा हुआ था । उसके बगल में चाँदी की एक दूसरी चौकी थी जिस पर खून से भरा हुआ चाँदी का एक छोटा-सा कटोरा, एक नश्तर और दो सलाइयाँ पड़ी हुई थीं । वह औरत जो मसहरी पर लेटी हुई थी, बहुत ही कमजोर और दुबली मालूम होती थी । उसके बदन में सिवाय हड्डी के माँँस या लहू का नाम ही नाम था मगर चेहरा उसका अभी तक इस बात की गवाही देता था कि किसी वक्त में यह निहायत खूबसूरत रही होगी । गोद में लड़का लिए हुए बाबू साहब उसके पास जा खड़े हुए और डबडबाई हुई आँखों से उसकी सूरत देखने लगे । उस औरत ने बाबू साहब की ओर देखा ही था कि उसकी आँखों से आँसू की बूंदें गिरने लगीं । हाथ बढ़ाकर उठाने का इशारा किया मगर बाबू साहब ने तुरन्त उसके पास जा और