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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/११४

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चौथा खण्ड
 

ब्राह्मणवेशधारिणीने कहा—“हाँ, मैं वही हूँ।”

कपालकुंडला बड़े आश्चर्यमें आई। लुत्फुन्निसाने उसका विस्मय देखकर कहा—“और सबसे बड़ी अचरज की बात है कि मैं तुम्हारी सौत हूँ।”

कपालकुंडलाने चौंककर कहा—“हैं, यह कैसे?”

इस पर लुत्फुन्निसाने शुरूसे अपना परिचय दिया। विवाह, जातिनाश, स्वामी द्वारा त्याग, सप्तग्राम आगमन, नवकुमारसे मुलाकात और व्यवहार, गत दिवस जंगल में आना, होमकारीसे मुलाकात आदि बातें वह क्रमशः कह गयी। इस समय कपालकुंडलाने पूछा—“तुमने किस अभिप्रायसे हमारे घर छद्मवेशमें आनेकी इच्छा की?”

लुत्फुन्निसाने कहा—“तुम्हारे साथ पतिदेवका चिरविच्छेद करानेके लिए।”

कपालकुंडला सोचमें पड़ गयी बोली—“यह कैसे सिद्ध कर पाती?”

लु०—तुम्हारे सतीत्वके प्रति तुम्हारे पतिको संशयमें डाल देती। लेकिन उसकी जरूरत नहीं; वह राह मैंने त्याग दी है। अतः अगर तुम मेरे कहे मुताबिक कार्य करो, तो सारी कामना सिद्ध हो; साथ ही तुम्हारा भी मंगल होगा।

कपा०—होमकारीके मुँहसे तुमने किसका नाम सुना था?

लु०—“तुम्हारा ही नाम। वह तुम्हारी मंगल या अमंगल कामनासे होम कर रहे हैं, यही जाननेके लिए प्रणाम कर मैं वहाँ बैठी। जब तक उनकी क्रिया समाप्त न हुई, मैं वहीं बैठी रही। होमके अन्तमें छलपूर्वक तुम्हारे नामके साथ होमका अभिप्राय पूछा। थोड़ी ही देरकी बातमें मैं समझ गयी कि होम तुम्हारी अमंगलकामनाके लिए है। मेरा भी वही प्रयोजन था, मैंने यह भी