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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/७२

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तृतीय खण्ड
 

का विशेष लोभ था। मन-ही मन उसने सोच रखा था, कि एक दिन माँग लूँगी। उस बेचारीकी वह आशा निर्मूल हो गयी। अतः कपालकुण्डला और उसके पति दोनोंके प्रति उसे जलन थी। अतएव स्वामिनीके प्रश्नपर उसने उत्तर दिया—‘दरिद्र ब्राह्मणकी सुन्दरता और कुरूपता क्या है?”

सहचरीके मनका भाव समझकर मोतीने हँसकर कहा—दरिद्र ब्राह्मण यदि उमरा हो जाये, तो सुन्दर होगा या नहीं?”

पे॰—इसके क्या मानी?

मोती—क्यों, क्या तुमने यह नहीं सुना है कि बेगमके कहने के अनुसार यदि खुसरू बादशाह हो गये तो मेरा पति उमरा होगा?

पे॰—यह तो जानती हूँ, लेकिन तुम्हरा पूर्व पति उमरा कैसे होगा?

मोती—तो हमारे और पति कौन हैं?

पे॰—जो नये होंगे।

मोतीने मुस्कराकर कहा—“मेरी जैसी सतीके दो पति, यह बड़े अन्याय की बात होगी। हाँ, यह कौन जा रहा है?”

जिसे देखकर मोतीने कहा कि यह कौन जा रहा है, उसे पेशमन् तुरत पहचान गयी। वह आगरेका रहनेवाला खान आजमका आदमी था। दोनों ही न्यस्त हो पड़ीं। पेशमन्‌ने उसे बुलाया। उस व्यक्तिने आकर लुत्फुन्निसाको कोर्निश कर पत्र दिया; बोला—“खत लेकर उड़ीसा जा रहा था। बहुत ही जरूरी खत है।”

पत्र पढ़ते ही मोती बीबीकी सारी आशालतापर तुषारपात हो गया। पत्रका मर्म इस प्रकार था:—

“हमलोगोंका यत्न विफल हो गया। मरते दम तक बादशाह अकबर हमलोगोंको बुद्धिबलसे परास्त कर गये। उनका परलोकवास हो गया। उनकी आज्ञाके बलसे युवराज सलीम अब जहाँ-