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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/७८

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तृतीय खण्ड
 

यह कहकर मोती मेहरुन्निसाके चेहरेपर एक गहरी निगाह डाल कुछ समझनेकी चेष्टा करने लगी, लेकिन मेहरुन्निसाके चेहरेपर डर या प्रसन्नताके कोई भी लक्षण दिखाई न दिये। मेहरुन्निसा ने बड़े ही घमण्डके साथ कहा—“वैधव्यकी आशंका! शेर अफगन अपनी रक्षा करनेमें कमजोर नहीं है। विशेषतः अकबरके शासनमें उनका लड़का भी बिना दोषके दूसरे का प्राण नष्ट कर बच नहीं सकता।”

मोती०—“यह सच है, लेकिन आगरेके ताजे समाचारोंसे मालूम हुआ है कि अकबर बादशाहका अन्तकाल हो चुका है। सलीम सिंहासनारूढ़ हुए हैं। दिल्लीश्वरका दमन कौन कर सकता है?”

मेहरुन्निसा आगे कुछ सुन न सकी। उसका समूचा शरीर सिहर और काँप उठा। उसने फिर अपना सिर नीचा कर लिया। उसकी दोनों आँखोंसे आँसूकी धारा बह गई। मोती बीबीने पूछा—“क्यों रोती हो?”

मेहरुन्निसा एक ठण्ढी साँस खींचकर बोली—“सलीम हिन्दोस्तान के तख्तपर है लेकिन मैं कहाँ हूँ?”

मोती बीबीका मनस्काम सिद्ध हुआ। उसने कहा—“आज भी तुम युवराजको एक क्षणके लिए भी भूली नहीं?”

मेहरुन्निसाने गद्गद स्वरमें कहा—“कैसे भूलूँगी! अपने जीवन को भूल सकती हूँ, लेकिन युवराज को भूल नहीं सकती। लेकिन सुनो बहन! एकाएक हृदयका आवरणपट खुल गया और तुमने सारी बातें जान लीं। लेकिन तुम्हें मेरी कसम है, यह बात दूसरेके कानमें न पहुँचे।”

मोतीने कहा—“अच्छा ऐसा ही होगा। लेकिन सलीम जब यह सुनेंगे कि मैं बर्द्धमान गयी थी, तो वह अवश्य पूछेंगे कि मेहरुन्निसाने मेरे बारेमें क्या कहा, तो मैं उनसे क्या कहूँगी?”

मेहरुन्निसाने कुछ देर सोचकर कहा—“यही कहना कि मेहरु-