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पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२०

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शासनकाल में जब देवगिरि का राजा हरपाल बंदी करके दिल्ली लाया गया, तब उसकी यही दशा हुई। मंदिरों को गिराकर उनके स्थान पर मस्जिदें बनाने का लगा तो बहुत पहले लग चुका था। अब स्त्रियों के मान और पतिव्रत की रक्षा करना भी कठिन हो गया। चित्तौर पर अलाउद्दीन की दो चढ़ाइयाँ कक्ल अतुल सुंदरी पद्मिनी की ही प्राप्ति के लिये हुई, अंत में गढ़ के टूट जाने और अपने पति भीमसी के वीर गति पाने पर पुण्य-प्रतिमा महाराणी पद्मिनी ने अन्य वीर क्षत्राणियों के साथ अपने मान की रक्षा के लिए अग्निदेव के क्रोड़ में शरण ली और जौहर करके हिंदू जाति का मस्तक ऊँचा किया । तुगलक वंश के अधिकारारूढ़ होने पर भी ये कष्ट कम नहीं हुए, वरन मुहम्मद तुगलक (सं० १३८२-१४०८)की ऊटपटांग व्यवस्थाओं से और भी बढ़ गए। समस्त राजधानी, जिसमें नव-जात शिशु से लेकर मरणोन्मुख वृद्ध तक थे, दिल्ली से लाकर दौलता-बाद में बसाई गई। परंतु जब वहाँ आधे से अधिक लोग मर गए,तब सबको फिर दिल्ली लौट जाने की आज्ञा दी गई। हिंदू जाति के लिये जीवन धीरे धीरे एक भार सा होने लगा, कहीं से आशा की झलक तक न दिखाई देती थी। चारों ओर निराशा और निर- क्लंबता का अंधकार छाया हुआ था। हिंदू रक्त ने खुसरो की नसों में उबलकर हिंदू राज्य की स्थापना का प्रयत्न किया तो था ( वि.सं० १३१८) पर वह सफल न हो सका। इसके अनंतर सारी आशाएं बहुत दिनों के लिये मिट्टी में मिल गई। तैमूर के प्राक्र- मण ने देश को जहाँ तहाँ उजाड़कर नैराश्य की चरम सीमा तक पहुँचा दिया। हिंदू जाति में से जीवन शक्ति के सब लक्षण मिट गए। विपत्ति की चरम सीमा पर पहुँचकर मनुष्य पहले तो परमात्मा की ओर ध्यान लगाता है और अपने कष्टों से त्राण पाने की प्राशा करता है; पर जब स्थिति में सुधार नहीं होता, तब परमात्मा