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पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१८९

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( १७१ ) । नवो मुक्काम यह हंस जव पहुंचिया पलक लंब हाँ कियो डेरा ॥ तहाँ से डोरी मकतार ज्यों लागिया _____ताहि चढ़ि हंस गोदै दरेरा। भये आनंद ले फंद सव छोड़िया पहुँचिया जहाँ सतलोक मेरा ॥ हंसिनी हंस सव गाय बजाय कै साजि कै कलस ओहि लेन आए । युगन युग वीछुरे मिले तुम आइ के प्रेम करि अंग सों अंग लाए ॥ पुरुख ने दरस जव दीन्हि या हंस को तपनि बहु जन्म की तव नसाए । पलटि के रूप जव एक सो कीन्हिया मनहु तव भानु खोड़स उंगाए ॥ पुहुप के दीप. पीयूख भोजन करै सब्द की देह जव हंस पाई। पुहुप के सेहरा हंस औ हंसिनी सच्चिदानंद. सिर छत्र छाई ॥ दि बहु दामिनी दमक बहु भाँति की जहाँ घन सब्द को घुमड़ लाई । लगे जहँ बरसने गरजि धन घेरि के उठत तहँ शब्द धुनि सति सुहाई ॥ सुनै सोइ हंस तहँ यूथ के यूथ है _____एक हो नूर एक रंग रागै। करत · वीहार मन भावनी मुक्ति भै कर्म औ . भर्म सव दूर भागे। रंक औ. भूप कोइ परखि आवै नहीं