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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/२०३

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ज़रूरत से ज्यादा बहनापा जताकर उसने सूखदा को नाराज कर दिया। द्वार तक मुआफ़ी माँगती हुई आई।

दोनों ताँगे पर बैठीं, तो नैना ने कहा--तुम्हें क्रोध बहुत जल्द आ जाता है भाभी!

सुखदा ने तीक्ष्ण स्वर में कहा--तुम तो ऐसा कहोगी ही, अपने भाई की बहन हो न ! संसार में ऐसी कौन औरत है, जो ऐसे पति को मनाने जायगी? हाँ, शायद सकीना चली जाती; इसलिए कि उसे आशातीत वस्तु मिल गयी है।

एक क्षण के बाद फिर बोली--मैं इससे सहानुभूति करने आयी थी; पर यहाँ से परास्त होकर जा रही हूँ। इसके विश्वास ने मुझे परास्त कर दिया। इस छोकरी में वह सभी गुण हैं, जो पुरुषों को आकृष्ट करते हैं। ऐसी ही स्त्रियाँ पुरुषों के हृदय पर राज्य करती है। मेरे हृदय में कभी इतनी श्रद्धा न हुई। मैंने उनसे हँसकर बोलने, हास-परिहास करने और अपने रूप और यौवन के प्रदर्शन में ही अपने कर्तव्य का अन्त समझ लिया, न कभी प्रेम किया, न प्रेम पाया। मैंने बरसों में जो कुछ न पाया, वह इसने घंटों में पा लिया। आज मुझे कुछ-कुछ ज्ञात हुआ कि मुझमें क्या त्रुटियाँ हैं। इस छोकरी ने मेरी आँखें खोल दी।


एक महीने से ठाकुरद्वारे में कथा हो रही है। पं० मधुसूदनजी इस कला में प्रवीण हैं। उनकी कथा में श्रव्य और दृश्य, दोनों ही काव्यों का आनन्द आता है। जितनी आसानी से वह जनता को हँसा सकते हैं, उतनी ही आसानी से रुला भी सकते हैं। दृष्टांतों के तो मानो वह सागर हैं और नाट्य में इतने कुशल कि जो चरित्र दर्शाते हैं, उनकी तसवीरें खींच देते हैं। सारा शहर उमड़ पड़ता है। रेणुकादेवी तो सांझ ही से ठाकुरद्वारे में पहुँच जाती हैं। व्यासजी और उनके भजनीक सब उन्हीं के मेहमान हैं। नैना भी लल्लू को गोद में लेकर पहुँच जाती है। केवल सुखदा को कथा में रुचि नहीं है। वह नैना के बार-बार आग्रह करने पर भी नहीं जाती। उसका विद्रोही मन सारे

कर्मभूमि
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