सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।


वह जमाना अब नहीं है। अगर अपना और बाल-बच्चों का सुख देखना चाहते हो, तो सब तरह की आफत बला सिर पर लेनी पड़ेगी। नहीं जाकर घर में आराम से बैठो और मक्खियों की तरह मरो।

ईदू ने धार्मिक गम्भीरता से कहा--होगा वही, जो मुक़द्दर में है। हाय-हाय करने से कुछ होने का नहीं। हाफिज़ तकदीर ही से बड़े आदमी हो गये। अल्लाह की रजा होगी तो मकान बनते देर न लगेगी।

जंगली ने इसका समर्थन किया--बस, तुमने लाख रुपये की बात कह दी ईद मियाँ! हमारा दूध का सौदा ठहरा। एक दिन दूध न पहुँचे या देर हो जाय, तो घुड़कियाँ जमाने लगते हैं--हम डेरी से दूध लेंगे, तुम बहुत देर करते हो। हड़ताल दस-पाँच दिन चल गयी, तो हमारा तो दिवाला निकल जायगा। दूध तो ऐसी चीज नहीं कि आज न बिके, कल बिक जाय।

ईदू बोला--वही हाल तो साग-पात का भी है भाई, बरसात के दिन हैं, सुबू की चीज शाम को सड़ जाती है, और सेंत में भी कोई नहीं पूछता।

अमीरबेग ने अपनी सारस की गरदन उठायी--बहूजी, मैं तो कोई कायदा कानून नहीं जानता मगर इतना जानता हूँ कि बादशाह रैयत के साथ इन्साफ़ ज़रूर करते हैं। रात को भेस बदलकर रैयत का हाल चाल जानने के लिए निकलते है। अगर ऐसी अरजी तैयार की जाय जिस पर हम सबके दसखत हों और बादशाह के सामने पेश की जाय, तो उस पर जरूर लिहाज किया जायगा।

सुखदा ने जगन्नाथ की ओर आशा-भरी आँखों से देखकर कहा--तुम क्या कहते हो जगन्नाथ, इन लोगों ने तो जवाब दे दिया?

जगन्नाथ ने बगलें झांकते हुए कहा--तो बहूजी, अकेला चना तो भाड़ नहीं फोड़ता। अगर सब भाई साथ दें, तो तैयार हूँ। हमारी बिरादरी का आधार नौकरी है। कुछ लोग खोंचे लगाते हैं, कोई डोली ढोता है, पर बहुत करके लोग बड़े आदमियों की सेवा टहल करते हैं। दो-चार दिन बड़े घरों की औरतें भी घर का काम-धंधा कर लेंगी। हम लोगों का तो सत्यानाश ही हो जायेगा।

सुखदा ने उसकी ओर से मुँह फेर लिया और मतई से बोली--तुम क्या कहते हो, क्या तुमने भी हिम्मत छोड़ दी?

कर्मभूमि
२६५