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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/२९२

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नहीं कराया गया? आप खुद फावड़ा लेकर क्यों नहीं पिल पड़े? गेरूए वस्त्र पहन लेने ही से आप समझते हैं, लोग आपकी शिक्षा को देववाणी समझेंगे?

आत्मानन्द ने सफाई दी—मैं कूड़ा साफ करने लगता, तो सारा दिन पिचौरा ही में लग जाता। मुझे पांँच-छ: गाँवों का दौरा करना था।

'यह आपका कोरा अनुमान है। मैंने सारा कूड़ा आध घण्टे में साफ कर दिया। मेरे फावड़ा हाथ में लेने ही की देर थी, सारा गाँव जमा हो गया और बात-की-बात में सारा गाँव झक हो गया।'

फिर वह गूदड़ चौधरी की ओर फिरा—तुम भी दादा, अब काम में ढिलाई कर रहे हो। मैंने कल एक पंचायत में लोगों को शराब पीते पकड़ा। सीताड़े की बात है। किसी को मेरे आने की खबर तो थी नहीं, लोग आनन्द से बैठे थे और बोतलें सरपंच महोदय के सामने रखी हुई थीं। मुझे देखते ही तुरन्त बोतलें उड़ा दी गयीं और लोग गंभीर बनकर बैठ गये। मैं दिखावा नहीं चाहता, ठोस काम चाहता हूँ।

अमर ने अपनी लगन, उत्साह, आत्म-बल और कर्मशीलता से अपने सभी सहयोगियों में सेवा-भाव उत्पन्न कर दिया था और उन पर शासन भी करने लगा था। सभी उसका रोब मानते थे। उसके गुलाम थे।

चौधरी ने बिगड़कर कहा—तुमने कौन गाँव बताया, सौताड़ा? मैं आज ही उसके चौधरी को बुलाता हूँ। वही हरखलाल है। जन्म का पियक्कड़। दो दफ़ा सजा काट आया है। मैं आज ही उसे बुलाता हूँ।

अमर ने जाँघ पर हाथ पटककर कहा—फिर वही डाँट-फटकार की बात? अरे दादा? डाँट-फटकार से कुछ न होगा। दिलों में पैठिये। ऐसी हवा फैला दीजिये कि ताड़ी-शराब से लोगों को घृणा हो जाय। आप दिन-भर अपना काम करेंगे ओर चैन से सोयेंगे, तो यह काम हो चुका। यह समझ लो कि हमारी बिरादरी चेत जायगी, तो बाम्हन ठाकुर आप ही चेत जायेंगे।

गूदड़ ने हार मानकर कहा—तो भैया, इतना बूता तो अब मुझमें नहीं रहा कि दिन भर काम करूँ और रात भर दौड़ लगाऊँ। काम न करूँ, तो भोजन कहाँ से आये?

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कर्मभूमी