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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/३४३

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मेट्रन छोटे कद की ऐंग्लो-इंडियन महिला थी। चौड़ा मुँह, छोटी-छोटी आँखें, तराशे हुए बाल, घुटनियों से ऊपर तक का स्कर्ट पहने हुए। विस्मय से बोली---यह क्या कहती हो सुखदा देवी? नौकरानी मिल गयी और जिस चीज का तकलीफ हो हमसे कहो, हम जेलर साहब से कहेगा।

सुखदा ने नम्रता से कहा---आपकी इस कृपा के लिये मैं आपको धन्यवाद देती हूँ। मैं अब किसी तरह की रियाअत नहीं चाहती। मैं चाहती हूँ, कि मुझे मामूली कैदियों की तरह रखा जाय।

'नीच औरतों के साथ रहना पड़ेगा। खाना भी वही मिलेगा।'

'यही तो मैं चाहती हूँ।

'काम भी वही करना पड़ेगा। शायद चक्की में दे दें।'

'कोई हरज नहीं।'

'घर के आदमियों से तीसरे महीने मुलाकात हो सकेगी।'

'मालूम है।'

मेट्रन की लाला समरकान्त ने खूब पूजा की थी। इस शिकार के हाथ से निकल जाने का दुःख हो रहा था। कुछ देर तक समझाती रही। जब सुखदा ने अपनी राय न बदली तो पछताती हई चली गयी।

मुन्नी ने पूछा---मेमसाहब क्या कहती थीं?

सुखदा ने मुन्नी को स्नेह भरी आँखों से देखा---अब मैं तुम्हारे ही साथ रहूँगी मुन्नी।

मुन्नी ने छाती पर हाथ रखकर कहा---यह क्या कहती हो बहू? वहाँ तुमसे न रहा जायगा।

सुखदा ने प्रसन्न मुख से कहा---जहाँ तुम रह सकती हो, वहाँ मैं भी रह सकती हूँ।

एक घण्टे के बाद जब सुखदा यहाँ से मुन्नी के साथ चली, तो उसका मन आशा और भय से काँप रहा था, जैसे कोई बालक परीक्षा में सफल होकर अगली कक्षा में गया हो।

कर्मभूमि
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