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ve प्रकट होता है कि विद्यापति को राजा शिवसिंह बहुत मानते थे । विद्यापति प्रतिभाशाली कवि और संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे । इन्होंने संस्कृत भाषा में पाँच उत्तम ग्रन्थ बनाये जिनका मिथिला में बड़ा आदर है । मैथिल भाषा में इनके बनाये बहुत से पद हैं, जो मिथिला में कामकाज के अवसर पर गृहस्थों के यहाँ गाये जाते हैं, और इनके कुछ पदों का वदेश में भी विशेष आदर है । इसी से कुछ बंगाली महाशय इनको भी बंगाली कवि कहते हैं, परन्तु ये बंगाली नहीं थे । इनकी कविता में श्रृंगार रस प्रधान है। संयोग वियोग के छोटे छोटे भावों को भी दिखाने में इन्होंने बड़ी पटुता दिख लाई है। हमने इनकी कविता में से कुछ अच्छे अच्छे पद चुन कर आगे संग्रह कर दिये हैं, उसके पढ़ने से पाठकों का सहज ही में यह पता चल जायगा कि इन्होंने भावों के फल- काने में कितनी सूक्ष्मदर्शिता का परिचय दिया है । इनकी कविता को चैतन्य महाप्रभु बहुत पसंद करते थे । वास्तव में इनकी कविता बड़ी ही श्रुति मधुर और भाव-विभूषिता है । विद्यापति ने पारिजात-हरण और रुक्मिणी-परिणय नामक दो नाटक ग्रन्थ भी बनाये है, हिन्दी में पहले नाटककार विद्यापति ही हैं । इनकी कविता की भाषा हिन्दी है, केवल थोड़े से ऐसे शब्द हैं जो मिथिला में घोले जाते हैं। अपनी कविता में स्थान स्थान पर इन्होंने ठेठ हिन्दी शब्दों का अच्छा प्रयोग किया है । इनकी कविता के कुछ चुने हुए पद यहाँ हम उद्धृत करते हैं। बहुत से पद चमत्कार पूर्ण होने पर भी हमने छोड़ दिये, क्योंकि उनके भावों में अश्लीलता अधिक थी ।