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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/७५

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२० बिहरि न जाइ । हृदय बड़ दारुन रे पिया बिनु एक शयन सखि सुतल रे अछल बालभु निस भोर । न जानल कति खन तेजि गेलरे बिछुरल चकवा जोर ॥ सून सेज हिय सालइ रे पियाए बिनु घर मोये आजि । विनति करहु सुसहेलिनि रे मोहि देह अमिहर साजि ॥ विद्यापति कवि गाओल रे आवि मिलत पिय तोर | लखिमा देइ वर नागर रे राय शिवसिंह नहिं भोर हमर नागर रहल दर देश, ॥ ४ ॥ ऊ नहिं कहि सक कुशल संदेश । ए सखि काहि करब अपतोस, हमर अभागि पिया नहि दोस । पिया बिसरल सखि पुरुष पिरीति, जखन कपाल वाम सब विपरीति । सरमक वेदन मरमहिं जान, आनक दुख आन नहि जान । भनइ विद्यापति न पुरइ काम, रे । रे ॥ कि करति नागरि जाहि विधि वाम॥५॥ लोचन धाए फोधाल हरि नहि आयल शिव शिव जिवओ न जाए आसे अरुझाएल मन करि तह उड़ि जाइअ जहाँ हरि पाइअरे । पेम परसमनि जानि आनि उर लाइन रे ॥ सपनहु संगम पाओल रंग बढ़ाओ रे । से मोर विहि विघटाओल निन्दओ हेरायल रे ॥ भनइ विद्यापति गाओल धनि धइज कर रे । अचिरे मिलत तोहिं बालम्भु पुरत मनोरथ रे ॥ ६ ॥