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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/७७

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पहिर लेल सखि इक दछिनक चीर, कविता-कीसदी पिया के देखेत मोर दगध सरीर । पिया लेलि गोद कै चललि बजार, हटिया के लोग पुछें के लागु तोहार । नहिं मोर देवर कि नहि छोट भाइ, सखि मोर पुरब लिखल छल स्वामी हमार ॥। ११ ॥ पिया, बहुन आओल कुलिश हिया । नखर खोयालु दिवस लिखि लिखि नयन अन्धाओलु पिया पथ पेखि, आयब हेत कहि मोर पिया गैला, पूरबक जेत गुन बिसरिल मनहि विद्यापति शुन अवराई, भेला । कानु समझाइते अब चलि जाइ ॥ १२ ॥ मधुपुर मोहन गेल रे. मोरा विहरत छाति । गोपी सकल बिसरलनि रे जत छिल अहिवाति ॥ सुतिल छलहुँ अपन गहरे निन्दई गेलउ करसों छुटल परसमनि से कोन गेल सपनाइ । अपनाइ ॥ गराणी । कत कहबो कत सुमिरब रे हम भरिय आनक धन सो धनवन्ति रे कुबजा भेल राणी ॥ गोकुल चान चकोरल रे चोरी गेल चंदा | बिछुड़ चललि दुहु जोड़ी रे जीव इह गेल धन्दा ॥ काक भाष निज भाखह रे पहु आओत मोरा । क्षीर खाँड़ भोजन देवरे भरि कनक कटोरा !! भनहिं विद्यापति गाओल रे धैरेज धर गोकुल होयत सुहाओन रे फेरि मिलत मुरारी ॥ १३ ॥ नारी !