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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/८२

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कबीर साहब 20 फकीर आये। कबीर साहब के पास उस दिन कुछ खाने को नहीं था इसलिये वे बहुत घबराये । लोई ने कहा--- यदि आशा हो तो मैं एक साहूकार के बेटे से कुछ रुपया लाऊ वह मुझ पर मोहित है, मैं पहुंचीं नहीं कि उसने रुपये दिये नहीं । कबीर साहब ने कहा- जाओ ले आओ । लोई साहूकार के बेटे के पास गई और उसने उससे अपना अभि प्राय कह सुनाया । साहूकार के बेटे ने तत्काल धन दे दिये । जब अन्त में उसने अपना मनोरथ प्रगट किया, तब लोई ने रात में मिलने का वादा किया । कर वं दिन खाने खिलाने में बीत गया। रात हुई, चारों ओर अँधेरा छा गया, संयोग से उस दिन पानी बरस रहा था । लोई ने कबीर साहब से सब वृत्तान्त कह दिया था, इससे कबीर साहब को चैन नहीं थी, वे सोचते थे कि जिसकी बात गई, उसका सब गया। उन्होंने हवा पानी की कुछ भी परवा न की और कम्बल ओढ़ कर स्त्रो को कंधे पर बिठा साहूकार के घर पहुँचे। आप तो बाहर खड़े रहे और लोई भीतर चली गई। न तो उसके कपड़े भीगे थे और न उसके पैर में कीचड़ ही लगी थी, यह देखकर साहू- कार के लड़के ने इसका कारण पूछा । लोई ने सब सच्च सच कह दिया । यह सुन कर साहूकार के बेटे की कुवृत्ति बदल गई, वह लोई के पैर पर गिर पड़ा और कहा- तुम मेरी मा हो । इतना कह कर वह बाहर आया और कबीर साहब के पैर से लिपट गया तथा उसी दिन से वह उनका सच्चा सेवक बन गया । कबीर साहब के जीवन चरित्र में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जिनसे उनकी सच्चरित्रता प्रकट होती है ।