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पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/२०४

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सिंहगढ़-विजय
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नगर के गण्य-मान्य जौहरी बैठे थे। वही चांदी की संदूकची सम्मुख रखी थी। महाराज ने कहा-इसका क्या मूल्य है?

'महाराज, इसका मूल्य कूतना असंभव है। यह मोतियों की माला ही अकेली दस लाख से कम मूल्य की नहीं।'

महाराज ने उन्हें विदा करके उस फ्रेंच को बुलाकर कहा-क्या तुम इन रत्नों का कुछ मूल्य अंकित कर सकते हो?

फिरंगी रत्नों की राशि देखकर दंग रह गया। उसने बड़े ध्यान से मोतियों की माला को देखकर कहा-यदि महाराज की आज्ञा हो, तो मैं इस अकेली माला के बदले में अपने संपूर्ण हथियार दे सकता हूं।

महाराज मुस्कराए। उन्होंने कहा-इसे तुम रख लो, मेरे निकट यह कंकड़-पत्थर के समान है। वे सभी हथियार और सामग्री मुझे आज संध्या से पूर्व ही मिल जानी चाहिए।

'जो आज्ञा महाराज।' फिरंगी चला गया।

चोबदार ने प्रवेश करके कहा-महाराज की जय हो! एक चर सेवा में उपस्थित हुआ चाहता है।

'उसे अभी भेज दो।'

चर ने महाराज के चरणों में सिर झुकाया।

'तुम हो महाभद्र?'

'महाराज की जय हो, सेवक इसी क्षण सुसमाचार निवेदन किया चाहता है।'

'क्या समाचार है?'

'बीजापुर-शाह का खज़ाना इसी मार्ग से जा रहा है।'

'कितना खज़ाना है?'

'पैंतीस खच्चर मुहरें हैं।'

'सेना कितनी है?'

'पांच हजार।

'शेष सेना कहां है।'

'वह सिंहगढ़ में महाराज पर आक्रमण की तैयारी में सन्नद्ध है। खज़ाना