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पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/६०

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इसके बाद उसने फिर एक पान खाया और मेरी ओर मुंह करके कहने लगी--जब आपने छेड़ा है तो पूरी कहानी सुनाकर ही दम लूंगी। इससे अनुताप की जो भीषण ज्वाला मेरे अन्दर धधक रही है, कुछ शान्त होगी।

मैंने भी एक ठण्डी सांस ली और एक सिगरेट जलाकर अबला की करुण कहानी सुनने को तैयार हो गया।

वह कहने लगी--उसके बाद मुझपर क्या बीती, मुझे मालूम नहीं क्योंकि मैं बेहोश थी और उसी दशा में छोड़ दी गई। सवेरे दरवाजा खुलने की आहट पाकर आंखें खुली तो देखा कि आगे-आगे माताजी और पीछे दारोगाजी कमरे में प्रवेश कर रहे हैं।

मैं कपड़े संभालकर उठ बैठी। माताजी मेरे पास बैठकर मुझे समझाने लगीं। दारोगाजी विजयी वीर की तरह बैठे मुस्करा रहे थे। उनकी ओर दृष्टि पड़ते ही मेरा सारा शरीर क्रोध से कांप गया। पास ही एक कांसे का लोटा पड़ा था, मैंने उसे उठाकर उनके मूंड पर दे मारा।सिर फूट गया और खून बहने लगा। इसके बाद वे उठकर वहां से चले गए और तब से आज तक मैंने उनकी सूरत नहीं देखी।

गाड़ी कानपुर के स्टेशन पर आकर ठहर गई । मुझे यहां उतरकर अपने एक मित्र से मिलना था। पण्डितजी भी कानपुर देखना चाहते थे। मैंने उठकर बिस्तर समेटते हुए रमणी से कहा--क्षमा कीजिएगा, मैंने आपको बड़ी तकलीफ दी। साथ ही आपकी पूरी कहानी भी न सुन सका।

इतने में पण्डितजी बोल उठे--इन्हें भी तो दिल्ली ही जाना है, अगर कोई क्षति न हो तो हम लोगों के साथ उतर पड़ें। कल फिर साथ ही चले चलेंगे।

मैंने कहा --प्रस्ताव तो आपका ठीक है, बशर्ते कि एक रोज़ यहां ठहर जाने में इनका कोई हर्ज न हो।

रमणी ने कहा--हर्ज क्या है। एक दिन ठहरकर ज़रा कानपुर भी देख लूंगी। यह कहकर उसने भी अपनी संगिनी बुढ़िया को बिस्तर आदि उठाने का आदेश प्रदान किया।

दूसरे दिन गाड़ी पर सवार होकर हम लोग एकसाथ ही दिल्ली के लिए रवाना हुए। कुछ आगे चलकर मेरे अनुरोध करने पर उसने फिर अपनी राम-