सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
11
काजल की कोठरी
 

सिरा पिटारे के साथ वधा हुआ था। जिमीदार न रत की तरफ दखा ना टूटी हुई दिखाई दी जिससे यह विश्वास हो गया रि यह पिटारा रस्सी के सहारे इसी राह से लटकाया गया है और ताज्जुब नही कि कोई आदमो भी इसी राह से कमरे मे आया हो क्योकि शमादान का अना सबबन या। न्यामिह ताज्जुव भरी निगाहो से उस पिटारे का देर तक दखने रहे, इसके बाद गिपाही के हाथ से लालटेन ल ली और उसस पिटारा खोलने के लिए वहा । मिपाही ने जो ताकतवर हान के साथ ही साथ दिलेर भी था झटपट पिटारा सोला औरतवना अलग करके देखातो उसमे बहुत-से कपटे भरे हुए दिखाई पडे। मगर उन कपडा पर हाथ रखने के साथ ही वह चौंक पडा और हट कर अलग खडा हो गया । जब कल्याण सिंह ने पूछा कि क्यो क्या हुआ?' तब उसने दोनो हाथ लालट गरे सामन रिये और दिखाया कि उसके दोनो हाथ सून से तर हैं।

कल्याण० हैं । यह तो खून है ।।

मिपाही जी हा, उस पिटारे में जो पठे है व खून से तर हैं और कोई बाँटेदार चीज भी उमम मालूम पडती है जो कि मेरे हाथ मे म्" मी तरह चुभी थी।

कल्याण. ओफ, नि म दह कोई भयानक बात है। अच्छा तुम "ग पिटारे कोसन कर बाहर ले चलो।

सिपाही बहुत खूब ।

सिपाही न जब उस पिटारे को उठाना चाहा तो बहुत हलवा पाया और सहज ही में वह उस पिटारे को कमरे के बाहर ले आया। उस समय तक और भी एक सिपाही तया दो-तीन नौकर वहा आ पहुधे थे।

कल्याणसिंह की आजानुसार रोशनी ज्यादा की गई और तब उस पिटारे की जाच होने लगी। निसन्देह उस पिटारे के अदर कपडे थे और उन पर सलमे सितारे का कर दिया हुआ था।

सिपाही (सलमे सितारे के काम की तरफ इशारा करते) यही मेर हाथ में गडा था और काटे यी सरह मालूम हुआ था । (एक कपडा उठा कर) आप यह तो ओढनी है।

दूगरा और बिल्कुल नई।