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पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/९

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काजर की कोठरी
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लोग चुपचाप बैठे गाना सुनत रहे मगर इस बाद जिमीदार कल्याणामह उपस्थित न होने का कारण जानने के लिए लोगो मे कानाफूसी होने लगी 'और लोग उहे बुलाने की नीयत से एका-एको मकान की तरफ जाने लगे। आधी रात जाने जाते महफिल में खलबली पड गई। वल्याणसिह आन का कारण जब लोगो को मालूम हुआ तो मभी घबडा गये और एका की करवे उम मरान की तरफ जाने लगे जिसम कल्याणसिंह रहत थे।

अब हम वल्यामिह का हाल बयान करत है और यह भी लिखते है कि वह अपन मेहमानो से अलग रहने पर क्या मजबूर हुए।

सध्या के समय जिमीदार रल्याणमिह भडार का इन्तजाम दखते हुए उस दालान म पहुचे जिसमे रडियो वा डेरा था। वे यद्यपि विगडल ऐयाश तो न थे मगर जरा मनचल और हसमुख आदमी जरूर थे इसलिए इन रडियो से भी हसी दिल्लगी की दो बातें करने लगे। इमी बीच मे नाजुम अदा बादी न उनपे पास आरर अपन हाथ का लगाया हुआ दो वीडा पान का खाने के लिए दिया । यह वही वादी रडी थी जिसका हाल हम पहिल लिख आए हैं । यल्याणसिंह पान का वोडा हाथ म लिए हुए लौटे तो उस जगह पहुचे जहा महफिल का मामान हो रहा था और उनके नौकर-चार दिलाजान से मेहनत पर रह थे । योडी दर तर वहा भी खडे रहे । यका पर उनके मर मे दद हाने लगा। उहान समया कि मेहनत की हरारत स एसा हो रहा है और यह भी मोचा कि महफिल में रातभर जागना पडेगा इसलिए यदि इसी समय दापण्टे सावर हरारत मिटा ले तो अच्छा होगा। यह विचार करत ही कल्याणमिह अपने कमरे में चल गए जा मर्दाने मकान म दुमजले पर था। चिराग जल चुका था, कमरे के अदर एव शमादान जल रहा था। कल्याणसिंह दर्वाजा वद करके एक खिडकी ये मामन चारपाई पर जा लेटे जिसम से ठडीडी बरसाती वा आ रही थी और महफ्लि का शामियाना तथा उसम काम-काज परत हुए आदमी दिखाई है रहे थे।

यह कमरा बहुत बडा न था ता भी तीस-चालीस आदमिया के बटन नायक पा । दीवारें रगीन और उन पर फूल-बूटे का काम होशियार मुसो हाय का रिया हुआ था। कई दीवारगीरें भी लगी हुई पी। वर