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पृष्ठ:कामायनी.djvu/२५

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ऐसे अतुल अनंत विभव में जाग पड़ा क्यों तीव्र विराग ?
या भूली-सी खोज रही कुछ जीवन की छाती के दाग !"

"मैं भी भूल गया हूं कुछ, हाँ स्मरण नहीं होता, क्या था ?
प्रेम, वेदना, भ्रांति या कि क्या ? मन जिसमें सुख सोता था !
मिले कहीं वह पड़ा अचानक उसको भी न लुटा देना ;
देख तुझे भी दूँगा तेरा भाग, न उसे भुला देना !"

कामायनी / 13