सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कामायनी.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

मनु आंख खोलकर पूछ रहे--" पथ कौन वहाँ पहुँचाता है?
उस ज्योतिमयी को देव! कहो कैसे कोई नर पाता है?
पर कौन वहाँ उत्तर देता! वह स्वप्न अनोखा भंग हुआ,
देखा तो सुन्दर प्राची में अरुणोदय का रस-रंग हुआ।
उस लता-कुंज की झिल-मिल से हेमाभरश्मि थी खेल रही,
देवों के सोम-सुधा-रस की मनु के हाथों में बेल रही।

कामायनी / 25