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कायाकल्प]
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न्याय न करेगी? हमारी राय से मेम्बर चुने जाते हैं; क्या कोई हमारी फरियाद न सुनेगा?

राजा—अच्छा! तो तुझे सेवा-समितिवालों का घमण्ड है?

चौधरी—हई है, वह हमारी रक्षा करती है, तो क्यों न उसका घमण्ड करें?

राजा साहब ओठ चबाने लगे—तो यह समितिवालों की कारस्तानी है। चक्रधर मेरे साथ कपट-चाल चल रहे हैं, लाला चक्रधर! जिसका बाप मेरी खुशामद की रोटियाँ खाता है। जिसे मित्र समझता था, वही आस्तीन का साँप निकला। देखता हूँ, वह मेरा क्या कर लेता है। एक रुक्का बड़े साहब के नाम लिख दूँ, तो बचा के होश ठीक हो जायें। इन मूर्खों के सिर से यह घमण्ड निकाल ही देना चाहिए। यह जहरीले कीड़े फैल गये, तो आफत मचा देंगे।

चौधरी तो ये बातें कर रहा था, उधर बाड़े में घोर कोलाहल मचा हुआ था। सरकारी आदमियों की सूरत देखकर जिनके प्राण-पखेरू उड़ जाते थे, वे इस समय निःशंक और निर्भय बन्दूकों के सामने मरने को तैयार खड़े थे। द्वार से निकलने का रास्ता न पाकर कुछ आदमियों ने बाड़े की लकड़ियाँ और रस्सियाँ काट डालीं और हजारों आदमी उधर से भड़भड़ाकर निकल पड़े, मानों कोई उमड़ी हुई नदी बाँध तोड़कर निकल पड़े। उसी वक्त एक ओर सशस्त्र पुलिस के जवान और दूसरी ओर से चक्रधर, समिति के कई युवकों के साथ आते हुए दिखायी दिये। चक्रधर ने निश्चय कर लिया था कि राजा साहब के आदमियों को उनके हाल पर छोड़ देंगे, लेकिन यहाँ की खबरें सुन सुनकर उनके कलेजे पर साँप-सा लोटता रहता था। ऐसे नाजुक मौके पर दूर खड़े होकर तमाशा देखना उन्हें लज्जाजनक मालूम होता था। अब तक तो वह दूर ही से आदमियों को दिलासा देते रहे, लेकिन आज की खबरों ने उन्हें यहाँ आने के लिए मजबूर कर दिया।

उन्हें देखते ही हड़तालियों में जान-सी पड़ गयी, जैसे अबोध बालक अपनी माता को देखकर शेर हो जाय। हजारों आदमियों ने घेर लिया—

'भैया आ गये! भैया आ गये!' की ध्वनि से आकाश गूँज उठा।

चक्रधर को यहाँ की स्थिति उससे कहीं भयावह जान पड़ी, जितना उन्होंने समझा था। राजा साहब की यह जिद कि कोई आदमी यहाँ से जाने न पाये। आदमियो को यह जिद कि अब हम यहाँ एक क्षण भी न रहेंगे। सशस्त्र पुलिस सामने तैयार। सबसे बड़ी बात यह कि मुंशी वज्रधर खुद एक बन्दूक लिये पैंतरे बदल रहे थे, मानों सारे आदमियों को कच्चा ही खा जायँगे।

चक्रधर ने ऊँची आवाज से कहा—क्यों भाइयों, तुम मुझे अपना मित्र समझते हो या शत्रु?

चौधरी—भैया, यह भी कोई पूछने की बात है। तुम हमारे मालिक हो, सामी हो सहाय हो! क्या आज तुम्हें पहली ही बार देखा है?