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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३३३

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पूंजीवादी उत्पादन . .

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- सा ध्यान दिया जाये और व्यवस्थित ढंग से काम किया जाये, तो कैसी-कैसी सफलताएं प्राप्त Haret" (“what a reasonable degree of care and method can accomp- lish") मजदूरों को कमी-कमी १२ या १४ अलग-अलग श्रेणियों में बांट दिया जाता था, और पुर इन श्रेणियों में दो लोग रखे गये , मी बराबर बदलते रहते थे। कारखाने के १५ पडे के दिन के दौरान पूंजी मजदूर को कमी ३० मिनट के लिये पारी में घसीट नाती थी, कभी एक घण्टे के लिये और उसके बाद फिर उसे बाहर धकेल देती थी, और कुछ समय बार उसे फिर अन्दर ले जाती थी और उसके बाद फिर बाहर निकाल देती थी। इस तरह पूंजी उसे कमी यहाँ घुमाती पी, कमी वहाँ, समय के बरा-भरा से दुकड़ों में उससे काम लेती थी, पर अब तक पूरे १० घन्टे का काम नहीं निकाल लेती थी, तब तक उसको अपने पंचों में से नहीं निकलने देती थी। जैसा कि रंगमंच पर होता है, केही व्यक्ति अलग-अलग अंकों के विभिन्न दल्यों में फिर-फिर सामने पाते । परन्तु जिस प्रकार अब तक नाटक चलता रहता है, तब तक अभिनेता पर रंगमंच का अधिकार रहता है, उसी प्रकार मजदूरों पर, घर से फैक्टरी तक माने जाने के समय के अलावा, पूरे १५ घण्टे तक फ़ैक्टरी का अधिकार रहता पा। इस प्रकार, विमाम के समय को सबस्ती बाली बैठे रहने के समय में बदल दिया गया, जिसने नौजवानों को शराबवानों में और लड़कियों को पकला-धरों में भेज दिया। मजदूरों की संस्था को बढ़ाये बिना अपनी मशीनों को १२ या १५ घन्टे तक चालू रखने के लिये पूंजीपति दिन प्रति दिन जो नयी तरकी निकालते थे, उनके साच-साथ मजदूर को कभी बात के इस दुकड़े में बल्ली गल्ली अपना भोजन निगलना पड़ता था, तो कभी उस दुकड़े में। १० पटे के पान्दोलन के समय मिल-मालिकों ने शोर मचाया पा कि मजदूरों की भीड़, असल में, इस उम्मीद में प्रावेदन-पत्र दे रही है कि उसे १० घन्टे के काम के एपस में १२ घन्टे की मजबूरी मिल जायेगी। पर अब उन्होंने तस्वीर का दूसरा सा खिलाया। मम-पाक्ति पर राम करते थे १२ या १५ घण्टे तक, पर उसके एवज में मजदूरी देते थे सिर्फ १० घन्टे की।' यही मामले का सार पा, मालिकों की १० घरे के कानून की यही माल्या पी! ये स्वतंत्र व्यापार के ही पालखी समर्वक, बिनके रोम-रोम से मानवता के लिये उनका प्रेम स्पका करता था और जिन्होंने अनाव के कानूनों के विरोध में चलने वाले पायोलन के काल में पूरे १० वर्ष तक मजदूरों को यह उपदेश सुनाया था और पाई-पाई का हिसाब लगाकर यह सिड किया था कि यदि मनाच बिना किसी रोकथाम के देश में पाने लगे, तो इंगलडके उद्योगों के पास इतने साधन मौजूद है कि जिनके द्वारा १० पटे का श्रम पूंजीपतियों को पनी बना देने के लिये बहुत काक्री होगा। 1देखिये "Reports, &c., for 30th April, 1849" ("रिपोर्ट, इत्यादि, ३० अप्रैल १८४६'), पृ., ६ । “Reports, &c., for 31st October, 1848 ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८४८') में फैक्टरी-इंस्पेक्टर होवेल और सौण्डर्स ने "shifting system" ("स्थान-परिवर्तन-प्रणाली") को जो विस्तृत व्याख्या की है, यह भी देखिये। उसके साप- साथ, १८४९ के वसन्त में ऐश्टन तथा पास-पड़ोस के पादरियों ने "shift system" ("स्थान-परिवर्तन-प्रणाली") के विरुद्ध रानी को जो पावेदन-पत्र दिया था, उसे भी देखना चाहिये।

  • futurer fort, aforat "The Factory Question and the Ten Hours' Bill"

('फेक्टरियों का सवाल और दस घण्टे का बिल'), R. H. Greg (पार• एच• प्रेग) द्वारा लिखित, [London] 18371 3 . .