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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१९९

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१६४ काव्य-निर्णय वि०-"यहाँ एक धर्म (श्वेत ) वाले अनेक उपमानों की, हिंदू नरेश जो कवि के आश्रय-दाता है, की कीर्ति से समता दी गयी है, अतएव 'एक धर्मा- मालोपमा' है।" अनेके अनेक की मालोपमा जथा- पंकज-से पग लाल नबेली के, केदली-खंभ-सी जाँनु सुढार हैं। चार के आँक-सी लंक लगी' तँन, कंज-कली-से उरोज उदार है। पल्लब-से मृदु पाँनि, जपा के प्रसूनँन-से अधरा सुकमार है। चंद-सौ निरमल आँनन 'दास' जू, मेचक चारु' सिबार से बार है।। वि.-"यहाँ नायिका के विविध अंगों की विविध उपमानों से समता दी गयी है, जैसे-“कमल से लाल-लाल पग की, कदली (केला) थंभ से जानु ( जाँच ) की, चार अंक के मध्य से सूक्ष्म कमर को, कंज-कली से उरोजों की, पल्लव से मृदु ( कोमल ) हाथों की, गुड़हर के फूल से लाल श्रोष्ठों की, चंद्र से स्वच्छ निरमल मुख की और सिवार से कोमल श्याम वालों की आदि.... अत- एव 'अनेकानेक धर्मा मालोपमा' है। दासजी की इस सुमधुर सूक्ति के साथ-साथ 'विजय' कवि का निम्नलिखित छंद-सवैया भी पढ़ने योग्य है, जैसे- "लखिके हग मीन दुरे जल में, मन में भरबिंद संकाने हैं। बदिनी भुबंगम देखि चपे, कटि केहरि चाहि लजाने हैं। उकसोंहे उरोजन देखि 'बिजे', मन देवन के ललचाने हैं। मुख-चंद की देखि प्रभा दिन में, चित में चकवा चकवाने हैं।" -नखसिस-हजारा एक बात और, संस्कृत-साहित्य के प्राचार्यों ने 'मालोपमा' के-प्रथम "भिन्न, अभिन्न तथा लुप्त-धर्मा" रूप भेद माने हैं, तदनंतर 'निरवयवा' (जिसमें उपमान-उपमेयकी सामिग्री (अंग) नहीं हो, सावयवा (जहाँ उपमेय के अवयवों को उपमान के अवयवों-द्वारा उपमा दी जाय), समस्त वस्तु विषया ( जहां उपमेय- उपमान के संपूर्ण अवयवों का शन्दों-द्वारा कथन किया जाय), एक देश विवर्तनी (जिसमें उपमान कहीं शब्दों से कथन किया जाय और कहीं नहीं ), परंपरिता (जिसमें एक उपमा दूसरी उपमा का कारण बनती हो ), श्लिष्टा, अश्लिष्टा, पा०-१. (प्र०-३) लसी...| २. (३०) प्रकार हैं। ३. (३०) चार से बार-से-बार है।