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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२०२

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काव्य-निर्णय १६७ बाचक-उपमान लुप्ता जथा- हिय सियराबै बर्दैन-छवि, रस बरसावें केस । परम घाइ' चितबन कर, सुंदरि, इही भदेस ।।. वि०-"अर्थात् यहाँ-"बदन-छवि, केश, और चितवन के उपमानों और वाचक शब्दों का कथन न कर उपमेय तथा धर्म का कथन किया है, इस लिये यहाँ वाचक-धर्म लुप्ता है। काव्य-निर्णय की प्राप्त प्रतियों में यह दोहा 'वाचक-लुतोपमा के उदाहरण' शीर्षक के अन्तर्गत भी मिलता है। वाचक-लुप्ता का उदाहरण--'अमँल सजल धनस्याम तन' पूर्व में प्राचुका है, फिर इस दोहा में केवल वाचक ही नहीं उपमान भी लुप्त है, अतएव यह उदाहरण “वाचक-उपमान लुप्ता" का ही है, वाचक-लुप्ता का नहीं।" उपमेइ-धरम लुप्ता जथा- मग-डारत ईगुर-पाँबड़े से, सुमनों से बगारत भाइ गई। जियरा' में ठगोरी-सी दैकें भले", हियरा बिच होरी-सी लाइ गई ।। नहिं जानिऐं को है', कहाँ की है 'दास' जो धन्न हिरन्न-लता-सी नई। ससि-सौ दरसाइ, सरे सौ लगाइ, सुधा-सौ सुनाइ के जाति भई ।। वि०-"यहाँ उपमेय और धर्म दोनों का कथन न होने से और केवल उपमान और वाचक का कथन करने से "उपमेय-धर्मलुप्तोपमा है।" उपमेइ, बाचक अरु घर म लुप्ता जथा- तिहूँ 'लुप्त' जहँ'• कहत हैं, केबल-ही उपमाँन । ता"हो कों 'रूपातिसं' उक्ति कहें मति-माँन ।। अस्य उदाहरन जथा- नम-ऊपर, सर-बीच-जुत, कहा कहों ब्रजराज । तापैबैठ्यो होलख्यौ, चक्रबाक जुगाज ।। पा०-१. (३०) (प्र० म०) (भा० भ०) रसावे'... २. (प्र०-३)(०) घाव... ३. (३०) (प्र० मु०) से । (भा० जी०) सौ...। . (३०) (प्र० म०) जियरे...। ५. (३०)(भा० जी०) भली.... ६ (३०)(प्र० म०) हियरे-विच...। ७. (३०) (सं० प्र०) को-ही...| R. (३०) (प्र० मु०) जू ... ६. (प्र० म ०) मरो म सिकाइ...। १०. (भा० जी०) (वे०)...ते और है...। ११. (प्र० म०) रूपकातिसै उक्ति तह, बरनत हैं...। १२. (प्र०) (२०) मैं...। १३. (३०) है....

  • मा० भू० ( केडिया) पृ०६४ ।