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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४९

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काव्य-निर्णय वि०-"जिससे किसी पदार्थ विशेष का सामान्य ज्ञान हो वह 'जाति- वाचक, जिस शब्द से किसी के बल एक पदार्थ का ही बोध हो उसे यहक्षा- बाचक कहते हैं। इसी प्रकार गुण-वाचक उसे कहते हैं जिससे किसी जाति की विशेषता का ज्ञान हो और जिससे पदार्थ के साध्य-धर्म का बोध हो उसे क्रिया वाचक कहते हैं। उदाहरण के लिये दासजी-द्वारा प्रयुक्त ऊपर का दोहा दृष्टव्य है, अर्थात् भगवान् श्री कृष्ण जाति-वाचक से 'यदुनाथ', यदृक्षा से 'कान्ह', गुण से 'श्याम' और क्रिया से 'कंसारि'-कंस के अरि, मारनेवाले विदित हैं।" प्रथम गुन बरनन 'दोहा' जथा- रूप, रंग, रस, गंध' गनि, और जु निसचल धर्म । इन सब को 'गुन' कहत हैं.' गुनि राखौ' यै मर्म । बाच्यार्थ बरनन 'दोहा' जथा- ऐसे सबदन सों जहाँ,' प्रघट होइ संकेत । तिहि 'बाच्यार्थ बखाँन-हीं, सज्जन, सुमति, सचेत ।। वि०-"वाचक शब्दों के अर्थ को 'वाच्यार्थ' कहा गया है, अतएव- जाति-वाचक में 'जाति', गुण-वाचक में 'गुण', क्रिया-वाचक में 'क्रिया' और यदृक्षा-वाचक शब्दों में 'यहता' रूप वाच्यार्थ होता है। नैयायिक ऐसा नहीं मानते, वे इन चारों प्रकार के शब्दों को केवल 'जातिवाचक' वाच्यार्थ ही मानते हैं और जैसा कि दासजी ने श्रागेवाले दोहे में कहा है । मुख्यार्थ तो इसलिये कहा जाता है कि 'लक्ष्यार्थ' और 'व्यंग्या के पूर्व वाच्यार्थ वहाँ उपस्थित है और 'अभिधेयाथ' उसे इसलिये कहा जाता है कि यह अभिधा का व्यापार है-- उससे वह बोध होता है।" अथ अभिधा बरनन 'दोहा' जथा- अनेकार्थ हू सबद में, एक अर्थ को भक्ति । तिहिं 'बाच्यारथ कों कहें सज्जन 'अभिधासक्ति ।।* पा०-(भा० जी०)...रंग....-(स० प्र०) (३०) रंगरूप रस गंध गंधि गनि,...। २. (भा० जी०) हो...। ३. (भा० जी०) (३०) राख्यौ, । ४. (प्र०) (का० प्र०) ऐसे सन्देन सों "फुरै, संकेतित जो अर्थ, ताकों वाच्यारथ कहैं, सज्जन सुमति-समर्थ ।-(प्र०-२) ऐसे सबर्दैन ते प्रघट,... ५. (प्र०) (प्र०-२) व्यक्ति । ६. (प्र०-२) ता...। ५. (का० प्र०) कहत ।।

  • का० प्र० (भानु), पृ० ६७ ।