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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५३८

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सायनिर्णय "कारण-माला"- "पूरब-परब प्ररथ जाँ, उत्तर • उत्तर हेत। 'कारन-माला' होत सो, सुने-बड़े चित चेता -चितामणि "पूरब ते उत्तर लो हेतुन की गुंफ तहाँ, कारन-माला यों...। "गुफ"- "कहिए 'गुंफ' परंपरा, कारन की जहँ होत" -जसवंतसिंह "हेतु-माला" "पूरब-पूरब हेतु जहँ, उत्तर-उत्तर काज ।" -मतिराम -इत्यादि...। यहाँ अलंकार-श्राचार्यों का यह भी कहना है कि "उत्तरोत्तर कथित पदार्थों के पूर्व-पूर्व कथित पदार्थ कारण-भाव से 'माला-दीपक' में भी कहे जाते हैं, किंतु वहाँ उन सब का एक क्रिया में अन्वय होता है, यहाँ (कारण-माला में ) नहीं, यही इसकी पृथक्ता है। कारण-माला के दो भेद- "प्रथम कारण-माला" (जिसमें पूर्व-पूर्व कथित पदार्थ उत्तरोत्तर कथित पदार्थों के कारण हो) और "द्वितीय कारण-माला" . ( जिसमें उत्तरोत्तर कथित पदार्थ पूर्व-पूर्व कथित पदार्थों के कारण हों) भी मिलते हैं। दासजी ने दोनों प्रकार की कारण-माला का कथन किया है।" उदाहरन जथा-- होत लोभते मोह, मोही ते उपजे गरव । गरब बढ़ावे कोह, कोह' कल्दै, कलहौ विथा ॥ विद्या देति जु' बिनै कों, बिनै पात्रता मित्त । पात्रत्वो' धुन, धन धरॅम, धरम देव सुख नित्त ।। पा० -१. (का. प्र.) कोह कलह कल्लाह दिया। (३०)...कलह कलही....। २. ( का०) () (प्र०)..देती विनय को...। ३. ( का० ) मीत...। ४.(का०) (३०) (०) पात्र... ५..( का० ) मीत ।।