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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६३०

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काव्य-निर्णय ५६५ रूप बंध मिलते हैं जैसे—'गोमूत्रिका, दर्पण, मुष्टिका, हलकुडली, चौकी, चामर (चमर) श्रादि..." प्रथम खरग-बंध चित्रालंकार जथा- हरि मुरि-मुरि जाती उमगि, लगि-लगि नेन-पान । ता ते कहिऐ रावरौ', हियौ पखाँन - समान ।। उदाहरन जथा- समान तम-ग)) - रुपैन। ताते कहिये राबरी,हियो परवान - अथ कमल-बंध चित्रालंकार जथा- छनु, दनु, अँनु, तँनु, प्रानु, हँनु, भाँनु, माँनु, अँनु माँनु ! ग्याँनु, माँनु, अँनु, ठाँनु, नु, ध्याँनु, आँनु, हनु, मान । अस्य उदाहरन h ज/त/ नाहं मो द पाहमा/ ११ /IPI मा / Wha वि०--"यह उन्नीस (१८) पखड़ियों का कमल-पुष्प है, मध्य में कोष है। अस्तु प्रस्तुत चित्रानुसार प्रथम पखड़ी के "," को कोष युक्त "नु" से मिलाकर पा०-१. (का०) रारे....