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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६३६

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६०१ 'काव्य-निर्णय जाँ-न' भाखै सर्दी, १०-छहों बारात्रों के अंकक्रमानुसार श्रादि अक्षर-'क', 'म', 'ल', 'न', 'य', 'न', ११-(मध्यवर्ती चक्र के अरात्रों में विभक्त कोष्ठक के ७ वें अक्षर 'च' 'र' नं, न स,₹ से प्रारंभ कर और चक्र के मध्य 'न' अक्षर पर समाप्ति । यहाँ यह ध्यान रखना चाहिये कि चक्र के मध्यवर्ती कोष्ठक में प्रयुक्त 'न' प्रत्येक श्रादि के चारों चों का अंतिम अक्षर है, गोले (चक्र) में विभज्य अंक एक से 'क' म (६), ल (९), न (४), य (३), न (२), तदनंतर मध्य चक्र अंक सात (७; के 'च' से प्रारंभ हो 'र' (११-२), 'न' (११-३), न (११-४), 'स' (११-५), २ (११-६) और मध्यकोष्ठ के 'न' (११-७) पर समाप्ति है । अथ फँनुष-बंध चित्रालंकार जथा- तिम-तन-दुरग अनूप में, मैंनमथ निबस्यौ बीर । हने लग' लगत धुंनुष, साधे निरखनि वीर ।। अस्य उदाहरन रख नि तीर COBER K T-REAT -धनुष, साधे- +लगत - 1350+तनदुरग- K पा०-१. (३०) लगल गत। २. (रा०पु०नी०सी०) सबै...।