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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/७२३

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६५८ कान्य-निर्णय रोम भवन के कुल-घाले, भलें' भयौ भौ-देबन को रखबारौ । दारिद-घालिबौ,दीनँन पालिबौ, रोम के नाम है कॉम तिहारो॥ क्यों लिखों रॉम को नॉम हिऐं कहाँ कागद ऐसौ पुनीत में पाँऊ । आखर पाछे, अनूठे तिहारे, क्यों जूठी जुबान सों हो रट लाऊ। 'दासजू' पाबनता-भरे पुंज हो, मोह-भरे हियरें क्यों बसाऊ । कॉम है मेरौ तमाम यहै, सब, जाम तिहारौ' गुलाम कहाँऊ।। जाँनों न भक्ति,नग्याँन को सक्ति, हों'दास'अनाथ, अनाथ के स्वामिजू । माँगों .इतौ बर दीन-दयानिधि, दीनता मेरी चितै भरौ हाँमि जू ॥ ज्यों बिच नाम के नेह को ब्यौर है, अंतरजाँमी निरंतरजाँमि जू । मो रसनाँ को रुचै रस ना, तजि रॉम नमामि, नमामि, नमामि जू॥ अथ प्रथ-रचना-समें बरनन जथा- संबत बिसंति ॐन-शै, ऊपर एक चतुष्ट । बुध-जन लेउ बिचार के, हृदें बरनि-धरि इष्ट ।।* "इति श्रीसकलकलाधरकलाधरबंपावतंसश्रीमन्महाराजकुमार श्रीवाबू हिंदूपति विरचिते 'कान्यनिरनए' रस-दोष-दोषोदार नाम पंचविसतिमोल्जासः॥" पा०-१. (का०) (प्र०) भयो रयौ देवन को रखवारौ। (३०) भयो रहै देवन को...। २. (का०)(३०) (प्र०)(सं०पु० प्र०) दीन को पालिी...। ३. (का०) (प्र०) को...। (३०).... नाम के नाम है...१४. (३०)...लिखों रामके नामन में, कहा कामद ऐसौ...। ५. (सं० पु. प्र०) वैसी पुनीत में पावों। ६. (३०) झूठी...। ७. (सं० पु० प्र०) लावों। क.(३०) नोह.... ६. (सं० पु० प्र०) बसावों। १०. (का०) (३०) (प्र०) जाम गुलाम तिहारी कहाबों। ११. (सं० पु०प्र०) यान... , यह दोहा मुद्रित प्रतियों में नहीं है।