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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/८७

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५२ काव्य-निर्णय "माई गमकी है, बदन पियाई बाई, सुधि ना रही-री कुछ मापने-परारे की। कहति कळू पै मुख-पढ़त कळू को कडू देखति हों भाज तेरी गति मतवारे की। नेक पिर है के बैठि, राई-लोन वारों तोपै, तू तो 'हनुमान' मेरो साथिन है वारे की। बजर परौ-री मो 4 पठई कहाँ ते हाइ, नजर लगी-री तोहि जुलफॅन वारे की ॥" और दासजी-द्वारा कथन, यथा- "ल्याई बाटिका-ही सों सिंगार-हार जाँनती हों, कंटकन लागे है उरोजन में घाबरी। दौरि-दौरि हैल के मैहैल है के बादि-ही, विगारयौ उर चंदन-रगंजन बनाव-री । तेरौ कोंन दोष 'दास' बात सब बूमि लीन्हीं, अपनी-ही सूझि तू तौ भरि भाई भावरी । पीत-पटवारे को बुलावन पठाई में तौ, तू तो पीत पट को रंगाइ ल्याई बावरी ॥" -*०नि० पृ० ६६ ब्यंग ते ब्यंगारथ वरनन 'दोहा' जथा- निहचल' बिसनी-पत्र पैं, उत बलाकर इहिँ भाँति । मरकत-भाजन 4 मनों अमल संख सुभ काँति ।।. अस्य तिलक बन निरजंन है, ताही ते बजाक (वक) निहचल (निश्वल) है, ये यंग है, ताते चलिक बिहार कीजै ये पीतम (नायक) को सुनायो (सो) यै व्यंग ते व्यंग है। वि०-"अर्थात् यहाँ निश्चल (निहचल) शब्द से जाना जाता है कि यह एकांत स्थल है-बेखटके का निर्जन प्रदेश है । अतएव नायिका उपपति को पा०-१. (३०) निसचल । २. (भा० जी०) बालक ।

  • , व्यं० मं० (ला० भ०) पृ० २६ ।