सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११७
काव्य में रहस्यवाद


रिज (Cileridge) ने छाया का। पर कालरिज की छाया इस जगत् पर, इस जीवन पर, पड़ी हुई छाया थी। वह किसी 'वाद' के अनुरोध से सारे जगत् को छाया और अपनी कल्पना को ईश्वरीय सत्ता बताता हुआ नहीं चला। उसका कहना यह था कि मनुष्य चारों ओर एक अज्ञात रहस्य से घिरा हुआ है जिसका परोक्ष विधान उसके जीवन का रंग बदला करता है। कालरिज का प्रस्तुत विषय जीवन है; परोक्ष रहस्य उसके बदलते हुए रंगों की हेतु-भावना के रूप में है। इससे कालरिज को भी हम सिद्धान्ती रहस्यवादी न कहकर स्वाभाविक रहस्य-भावना-सम्पन्न कवि मानते हैं।

इधर हिन्दी में कभी-कभी रहस्यवाद के सम्बन्ध में जो लेख निकलने लगे हैं उनमें से बहुतों में एक साथ बहुत से नामों की उद्धरणी -- जैसे, वर्ड्सवर्थ, शेली, कालरिज, ब्राउनिंग यहाँ तक कि कीट्स (Keats) भी मिलती है। इनमें वर्ड्सवर्थ तो प्रकृति के सच्चे उपासक थे। वे प्रकाश या अभिव्यक्ति को लेकर चले थे। उनका 'रहस्यवाद' से कोई सम्बन्ध नहीं। प्राकृतिक दृश्यों के प्रति जैसी सच्ची भावुकता उनकी थी, अँगरेज़ी के पिछले कवियों में किसी की न थी। एक छोटी-सी कविता में उन्होंने इस बात पर बहुत खेद प्रकट किया है कि ऐसे मधुर और प्रिय रूपो को नित्य प्रति सामने पाकर भी अब लोगों के हृदय उनकी ओर आकर्षित नहीं होते। उन्होंने यहाँ तक कहा है कि "इससे अच्छा तो यह था कि हम लोग ईसाई न होकर पुराने मूर्ति-पूजक ही रहते और