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पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/७३

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काव्य में रहस्यवाद

इस मत के प्रधान प्रवर्त्तक इटली के क्रोस (Benedetto Croce) महोदय हैं। अभिव्यंजना-वादियों (Expressionists) के अनुसार जिस रूप में अभिव्यंजना होती है उससे भिन्न अर्थ आदि का विचार कला में अनावश्यक है। जैसे, वाल्मीकि-रामायण में राम की इस उक्ति मे—

न स संकुचितः पन्था येन वाली हतो गतः।

कवि का कथन यही वाक्य है, यह नहीं कि "जिस प्रकार बाली मारा गया उसी प्रकार तुम भी मारे जा सकते हो।" एक और नया उदाहरण लीजिए। यदि हम पर कभी कविता करने की सनक सवार हो और हम कहें कि—

भारत के फूटे भाग्य के टुकड़ो! जुड़ते क्यो नहीं?

तो हमारा कहना यही होगा; यह नहीं कि "हे फूट से अलग हुए अभागे भारतवासियो! एकता क्यों नहीं रखते? यदि तुम एक हो जाओ तो भारत का भाग्योदय हो जाय।"

अभिव्यंजना-वादियों के काव्य-सम्बन्धी उपर्युक्त कथन में जो वास्तविक तथ्य है उसकी ओर हमारे यहाँ के आचार्यों ने अपने ढंग पर पूरा ध्यान दिया है। रसवादियो ने रस को और ध्वनिवादियों ने काव्यवस्तु को व्यंग्य कहा है। उनके अनुसार रस को या वस्तु की व्यंजना होनी चाहिए, अभिघा द्वारा सीधे कथन नहीं। "रस व्यंग्य होता है" यह कथन कुछ भ्रामक अवश्य है। इससे यह भ्रम होता है कि जिस भाव की व्यंजना होती है वही भाव रस है। यही बात वस्तुच्यंजना के सम्बन्ध में भी समझिए।