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पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/८

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काव्य में रहस्यवाद

का ही पर्य्याय है। जो लोग केवल शान्त और निष्क्रिय (Static) सौन्दर्य्य के अलौकिक स्वप्न मे ही कविता समझते हैं वे कविता को जीवन क्षेत्र से बाहर खदेड़ना चाहते हैं।

योरप का वर्तमान लोकादर्शवाद (Humanitarian Idealism) मनुष्य की अन्तःप्रकृति के एक समूचे पक्ष के सर्वथा निराकरण मे—केवल प्रेम और भ्रातृभाव की भीतरी शक्ति द्वारा क्रूरता, क्रोध, स्वार्थमद, हिंसावृत्ति आदि की चिर शन्ति में—काव्य का परम उत्कर्ष मानता है और उसी के भीतर सौन्दर्य और मंगल को वद्ध देखता है। उसका कहना कुछ-कुछ इस प्रकार है—

"सौन्दर्य से, प्रेम से, मंगल से पाप को एक दम समूल नष्ट कर देना ही हमारी आध्यात्मिक प्रकृति की एक मात्र आकांक्षा है।.....उच्च साहित्य अन्तरात्मा के आन्तरिक पथ का अवलम्बन करना चाहते हैं। ऐसे साहित्य स्वभाव-निःसृत अश्रुजल से कलंक-मोचन करते हैं, आन्तरिक घृणा से पाप को दग्ध करते हैं और स्वाभाविक आनन्द से पुण्य का स्वागत करते हैं॥"[१]

यह परम भक्त ईसाई टाल्सटाय के साहित्यिक उपदेशो की वंग-प्रतिध्वनि है। थोड़े शब्दो में इसका खुलासा यह है कि संसार मे यदि क्रूरता, हिंसा, अत्याचार, स्वार्थमद आदि हैं तो अत्याचारी को विवेकी, क्रूर को सदय, पापी को पुण्यात्मा, अनिष्टकारी को प्रेमी बनाने के अविचल प्रयन्त-प्रदर्शन में ही साहित्य की उच्चता है अर्थात् शुभ और सात्विक भावों की अशुभ और तामस


  1. श्रीरवीन्द्रनाथ ठाकुर—"प्राचीन साहित्य"।