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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१६

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के हेतु लोगों को ठाकुर की पदवी दी जाती थी। (७ त० २८ लो० ) तुरुष्क देश से सोने का सुलन्या करने की दिखा हर्ष के समय में आई। (७ त० ५३श्लो०) इली के काल में खस लोगों ने पहले पहल बन्दूक का युद्ध किया (७त०८८४ श्लो०) कलिंजर के राजा, राजा उदयसिंह आदि कई राजाओं के प्रसंग से (१३०० श्लो० के मालपास) नास आए हैं। यद्ध हारने के समय क्षत्रा-नियां राजपुताने की भांति यहां भी जल जाती थीं। (७ त० १५०० लो०)

अष्टमतरंग में भी कायस्थों को बहुत निन्दा की है। (८ त० ८८ ली आदि) कैदियों को मांग से रंग कर कपड़ा पहनाते थे। (८ त० ८३ श्लो०) वाल्याण के हेतु लोग मीलस्तवराज, गजेन्द्रमोक्ष, दुर्गापाठ जादि का पाठ करते थे (८ त० १०६ श्लो०) टकसाल का नाम टंकशाला । (८ त० १५२ श्लो०) उस समय में भी राजाओं को इस बात का आग्रह होता था कि उन्हीं के नास को सिक्के का प्रचार विशेष हो। इस समय (बारवीं शताब्दी के मध्य में)कालिंजर का राजा कल्ह था । (८ त० २०५ श्लो०)कटार को कट्टार कहते थे। (८ त० ५१५ श्लो०) हर्ष का सिर काट कर लोगों ने आले पर चढ़ाया किन्तु इस के पहले किसी राजा के सिर काटने की चाल नहीं थी। हर्ष का व्याख्यान इस तरंग में अवश्य पढ़ने के योग्य है जिस से शृङ्गार वीर आदि रसों का हृदय में उंदय होकर अन्त में बैराग्य प्राता है।

राजतरंगिणी में रामलक्ष्मण की मूर्ति का पृथ्वी के भीतर से निकलना इस बात का प्रमाणं है वि सूति पूजा यहां बहुत दिन से प्रचलित है।

इस में देवी, देवता, भूत प्रेत और नागों की अनेक प्रकार की आश्चर्य कथा है जिन को ग्रन्ध बढ़ने के भय से यहां नहीं लिखा।और भी वृक्ष, शस्त्र औषधि और मणि आदिकों के अनेक प्रकार के वर्णन हैं। कोई महात्मा इस का पूरा अनुवाद करंग ता साधारण पाठका को इसका पणे त्रानन्द मिलेगा।

इस में एक मणिका वर्णन वड़ा आश्चर्य जनक है। एक वेर राजा नदी पार होना चाहता था किन्तु कोई सामान उस समय नहीं था। एक सिद्ध मनुष्य ने जल में एक मणि फेक दी उस से जल फट गया और सैना पार उतर गई। फिर दूसरी मणि को बल से इस मणि को उठा लिया। एक कहानी ऐसी और भी प्रसिद्ध है कि किसी राजा की अंगूठी पानी में गिर पड़ी। राजा को उस अमूल्य रत्न का बड़ा शोच हुशा यह देख कर मंत्री ने अपनी अंगठी डोरे में बांध कर पानी में डाली। संत्री के अंगूठी के रत्न में ऐसी शक्ति थी कि अन्य रत्नों को वह खींच लेती थी इस से राजा की अंगूठी मिल गई।