सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ६ ]


साठीवेट का इलाका बड़े बहादुरी से छीन लिया था। बाजीराव सन्-१७४० में मरा और उसका बड़ा पुत्र बाला जी उर्फ नाना साहब पेशवा हुा । इसका एक छोटा भाई रघुनाथ राव नाम का था इसने पूना को अपनी राजधानी बनाया। इसके छोटे आई के अधिकार में फौज का और चचेरे भाई

सदाशिव राव आंऊ के अधिकार में राज्य का सब काम था। यधपि नाना साहब राज्य के कामों में बड़ा चतुर था पर कपटी और बड़ा पालसी मनुष्य था पर उसके दोनों भाई अपने काम में ऐसे सावधान थे कि उसकी बात में कुछ फरक न पडने पाया। सदाशिव राव आज ने रामचन्द्र वावा शेणिवी को साथ लेकर महाराष्ट्री राज्य का फिर से नया और पका प्रबन्ध किया । महाराष्ट्रों का बल उस समय पूरा जमा हुआ था और हिन्दुस्तान में ये लोग चारो ओर चढ़ाइयां करते फिरते थे। दिल्ली का बादशाह तो मानो इनकी कठपुतली था। नाना साहब से नागपुर के सरदार राघोजी सोसला ले हाछ वैमनस्य हो गया था पर साधु-राजा ने बीच में पड़ कर विहार भयोध्या और बंगाल का सरहटी अधिकार भोसला को छुड़वा कर आपस का वेष मिटा दिया।

सन् १७४८ ई० में एक सौ चार वर्ष का होकर निजामुल मुल्ला सर गया। उसके पीछे बारह बर्ष तक उसका राज्य अव्यवस्थित पड़ा रहा फिर उसके मुत्रों में से निज़ामली नाम के एक मनुष्य ने वह राज्य पाया। रघुनाथ राव ने अटक से कटक तक हिन्दुस्तान को दो वैर जीता पर वहां का रुपया वसूल करना हुल्कर और सेंधिया के अधिकार में करके श्राप फिर आया।

इसी अवसर में अहमदशाह अफ़गानों की बड़ी भारी फौज लेकर हिन्दुस्तान में सराठों को जीतने के लिये आया। तब सदाशिव राव भाज और पेशवा का बड़ा लड़का विश्वास राव ये दोनों सेंधिया हुल्कर गाइकवाड़ और और और सर्दारों के साथ डेढ़ लाख पैदल पचपन हजार सवार और दो सौ तोप की फौज से दिल्ली की ओर चले और सन् १७६० ई० में जब सरहटों ने दिल्ली जीती थी तब से उन की बहुत सी फौज दिल्ली में भी थी सो वह फौज भी इन लोगों के साथ मिल गई पर दो महीने पीछे इनके पोज में अनाज का ऐसा टोटा पड़ा मरहटों से सिवा लड़ने के और बाछ बन न पड़ा । यह बड़ी लड़ाई पानीपत को सैदान में सन् १७६१ ई० के जनवरी महीने की सातवीं तारीख को हुई। भाऊ निजामली के जीतने से ऐसा गर्वित हो रहा