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पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/३८

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एक बात और भी है। इन सभी पार्टियों का दावा है कि ये मजदूरों की पार्टियाँ हैं। कम्युनिस्ट पार्टी का तो यही दावा है। लेनिन को कम्युनिस्ट पार्टी का नामकरण या जन्म बोल्शेविक पार्टी से ही हुआ रूस की अक्टूबर १९१७ को क्रान्ति की सफलता के बाद। और यह बोल्शेविक पार्टी बनी थी रूस की सोशल डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी के ही बहुमत से। उस लेबर या मजदूर पार्टी के बहुमत ने जो निर्णय किया उसे अल्पमत ने न माना और वह अलग हो गया। इस तरह स्पष्ट है कि आज की कम्युनिस्ट पार्टी मजदूरों की ही पार्टी है। लेनिन के लेखों में सर्वत्र यही बात पाई जाती है। मार्क्स ओर एंगेल्स ने भी शुरू-शुरू में दूसरे-दूसरे नामों से इसे मजदूर पार्टी के रूप में ही बनाया। ऐसी दशा में किसानों की वर्ग संस्था उस मजदूर पार्टी की छत्रछाया या लोडरी में कैसे बन सकती और सबल हो सकती है? मजदूर पार्टी की अधीनस्थ किसान-सभा किसानों की स्वतंत्र वर्ग संस्था वास्तविक रूप से बन पायेगी कैसे? और अगर कम्युनिस्ट पार्टी इस ठोस सत्य को मिटाकर यह दावा करे कि वह किसानों तथा मजदूरों की-दोनों की-पार्टी है, तो प्रश्न होता है कि वह अनेक वर्गों की संस्था होकर किसानों की वर्ग संस्था को अपने अधीन कैसे रख सकेगी और उसके साथ न्याय कर सकेगी। किसान-सभा की नकल वह भले ही खड़ी करे। मगर असली और बलवती किसान-सभा वह हर्गिज न बनने देगी। बहुवर्गीय संस्था होने के नाते यदि कांग्रेस के मातहत किसान-सभा नहीं बन सकती तो कम्युनिस्ट पार्टी का पुछल्ला क्यों बनेगी?

कहा जा सकता है कि कांग्रेस के भीतर रहने वाले वर्ग परस्पर विरोधी हैं। दृष्टान्त के लिये जमींदारों का विरोध किसानों से है। फलतः उसकी मातहती में किसान-सभा नहीं बन सकती है। मगर किसानों तथा मजदूरों के स्वार्थों का तो परस्पर विरोध है नहीं, किसान और मजदूर भी परस्पर विरोधी वर्ग इसीलिये नहीं हैं। तब इन दोनों की संस्था स्वरूप इस कम्युनिस्ट पार्टी के अधीन किसान-सभा क्यों न होगी?

मगर यह दलील लचर है। अन्ततोगत्वा इन दोनों के स्वार्थ जरूर