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पृष्ठ:कुँवर उदयभान चरित.djvu/३५

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कुँवर उदयभान चरित।


चबेली इस ढब से छूटें जो देखतों की छातियोंके किवाड़ खुलजायं और पटाखे जो उछल उछल के फूटें उनमें से हँस्तीसुपारी और बोलते पखरौटे ढुलढुल पड़ें और जब तुम सबको हँसी आवे तो चाहिये उस हँसी के साथ मोती की लड़ियां झड़ें जो सबके सब उनको चुन चुनके राजराजे होजाबें डोमिनियोंके रूपमें सारंगियां छेड़ छेड़ सोहलें गावो दोनों हाथ हिलावो उँगलियां नचावो जो किसी ने न सुने हों वह ताव भाव आव जाव राव चाव दिखावो ठुड्डिया कपकपावो और नाक भवें तान तान भाव वतावो कोई फूटकर रह न जावो ऐसा भाव जो लाखों बरस में होता है जो जो राजा इन्दर ने अपने मुँह से निकाला था आंख की झपक के साथ वहीं होने लगा और जो कुछ उन दोनों महाराजों ने इधर उधर कह दिया था सब कुछ उसी रूपसे ठीकठाक होगया जिस ब्याहने की यह कुछ फैलावट और जमावट और रचावट ऊपर तले इस जमघटे के साथ हो कि उसका और कुछ फैलावा क्या होगा यह ध्यान करलो।

ठाठ गुसाईं महेन्दरगिरिका।

जब कुँवर उदयभान को उस रूप से ब्याहने चढ़े और वह बामन अंधेरी कोठरी में मुंदा हुआ था उस को भी साथ लेलिया और बहुत से हाथ जोड़े और कहा बाह्मन देवता हमारे कहने सुन्ने पर न जावो तुम्हारी जो रीत होती चली आई है बताते चलो एक उड़नखटोले पर वह भी रीति बताने को साथ हुआ राजा इन्दर और गुसाईं महेन्दरगिर ऐरावत हाथी पर झूमते झामते देखते भालते सारा अखाड़ा लिये चले जाते थे राजा सूरजभान दूल्हे के घोड़े के साथ