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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१०४

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परिच्छेद) स्वगायकुमुम SanPPAMA.MAA- onlGH उसने इतना किया तो बहुत सुनासिब ही किया। अगर इतना वह न करती तो शायद लोगों का खयाल कुछ और ही होता, पर चुन्नो की चालाकी से लोग उसकी बड़ाईही करते और कहते कि, 'जैसा इस रडी ने अपने यार के लिये किया, वैसा कोई विवाहिता स्त्री भी अपने पति के लिये न करेगी !' "मैंने इस विषय में कुछ और रहस्य जानने के लिये उस समय लोगों से यों पूछा था कि,-'यह किसका त्रयोदशाह है,?" इसपर होरालाल नाम के मेरे ही सुनीच ने मुझसं यो कहा था- "तुम शायद यहाके रहनेवाले नहीं हो! म.-"जी नहीं। होगालाल,-"तो सुनो! यह चुन्नी रंडी है । यह यहाँके एक रईस और जिमीदार बाबू०००के पास नौकर थी। बावमाहब ने अपने कुल में किसी को अपने माल का वाजिबो चारिसन समझकर अपनी सारी दौलत इसके नाम लिख दी थी; पर हाय ! लिखापढ़ी होने के कई दिनों बाद यक-च-यक बाबूमाहव हैजे से मर गए! " मैं,--(ताज्जुब से ) 'वे कहां मरे ? यहीं, या विदेश में ? " "यह बात मैंने इमलिये पूछी थी कि मुझे छुरी मारना या नदी मे बहाना तो कोई जानता ही नहीं तो हो. न हो.~-मेरेमरने की खबर किसी विचित्र ढंग से जाहिर की गई होगी!" हीरालाल ने कहा,-"नहीं, बाबूमाहब को रात के दो बजे हैजा हुआ, तीन बजते बजते मर गए, चार बजे उनकी लाश गागी नदी के किनारे पहुंचाई गई और लोगोंके बहुत मना करने पर भी चुन्नी ने खुद अपने हाथ से उन्हें आग दी। यहाँ तक अपना हाल सुनाकर भैरोसिंह ने कुसुमकुमारी से यों कहा,-"सुना. तुमने ? यह मज़दार ख़बर सुनकर मैं बड़ा घबराया कि मेरी दूमरी लाश कहांसे पैदा हुई ! क्या इस नालायक पिशाची चुन्नी ने किसी और दूसरे बेगुनाह शख्स को मारकर उसे मेरी लाश में शुमार कराके फंक दिया : खैर ! फिर मैंने हीरालाल से पूछा,-"उन पावूसाहब की लाश के साथ यहांके ( इस शहर के रईस और बाकंवरसिंह भी थे?" हीरालाल.-"जी नहीं.लाश के साथ हमलांगों (घर के नौकरों) के अलावे और कोई नहीं था। हमलोगों नजरा देर फरने के लिये