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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/११५

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स्वगीयकुसुम ( अट्ठाईसवा इस बाग में आया और उसने हम-सभों को बेहोश करके अपनी एक नाकिस कार्रवाई की !" मैने अनजान वनकर पूछा,-"ऐसा ! तो क्या कोई बात चुन्नी बोली,-'हां ऐसाही हुआ है ! झगरू ने रात को चुप चाप यहां आकर पहिले तोयहांके मौजूदा लोगों को बेहोशी की दवा संघाकर वेहोश किया, इसके बाद मेरे आंचल में से हम्माम की ताली चुराकर सुबह को मुझे होश कराया। उसके साथ मेरी तकरार हो गई है, इस लिये तुम्हें यह हुक्म दिया जाता है कि वह आज ले मेरो ड्योढ़ी पर न चढ़ने पावे !" "इसपर मैने-"बहुत खूब" कहकर छुट्टी पाई और वापस आकर अपने तई दूसरे काम में मशगूल किया। झगरू के साथ उसके ताल्लुक छुटने की बात सुनकर उस समय तो मुझे बड़ी खुशी हासिल हुई थी, मगर यह खुशी चन्दरोज़ा थी और.कई महीने बाद झगरू के साथ यह फाहिशा फिर को-खिचड़ी की तरह मिल गई थो! कुसुम ने पूछा,-"इसके बाद फिर क्या हुआ ? " भैरोसिंह ने कहा,-"फिर यह हुआ कि चुन्नी ने उस सुरंग के खोलने के लिये हज़ार सिर पटका, लेकिन फिर उसका दर्वाजा नही ही खुला। यहा तक कि अस्वीर में वह डूब कर मर भी गई, पर सुरग के खुलने का सुख फिर उसे उसकी जिन्दगी में कभी नसीब न हुआ। कुसुम,-"फिर क्या हुआ?" मैरासिंह,-"फिर तो मैं बाबा तुलसीदास की रामायण पढ़ा करता और जब यहां जी घबराता, तो घर ( बक्सर ) जाने का बहाना करके छुट्टो लेकर काशी, मथुरा, वृन्दावन आदि की सैर कर पाया करता था।" कुम्बुम-" बेशक. आप मुझे अपन बेटी ही की तरह प्यार करते और खिलात-पिलाते थे। भैरोसिह ने कहा,"बेशक. बात ऐसीही है। सचमुच मैं तुम्हें बहुत प्यार करता यां । इसीसे जय से तुम्हें युन्नी लाई तबस मेरा क्सि सम्हा मरेर ऐसा सिंच गया कि मैं रात दिन तम्हें ।