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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१४

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परिच्छेद ] कुसुमकुमारी तीसरा परिच्छेद, सात में एक. "द्वीपादन्यस्मादपि, मध्यादपि जलनिधेर्दिशोऽप्यन्तात् ।। आनीय झटिति घटयति, बिधिरभिमतमभिमुखीभूतः॥" (रत्नावली.) बेरे के सात बजे होंगे. ऐसे समय में साहब मजिष्ट्रेट स अपने तंबू के आगे बड़े शामियाने के नीचे इजलास कर रहे हैं और करीने से पेशकार वगैरह अपनी-अपनी जगह पर बैठे हैं। साहब के आगे एक कुर्सी पर सिविल- सर्जन-साहब बैठे हैं, सामने अलग-अलग बैंच पर एक नौजवान लड़की और एक नौजवान मर्द बैठा है और जमादार कई बर्कंदाजों और चौकीदारों के साथ एक ओर अब से खड़ा है। मजिष्टेट-साहब ने जमादार से पूछा,-" वेल ! टुमारा नाम ?" जमादार,-" खुदावन्द ! ताबेदार का नाम करीमबख़्श है और यह फ़िदवी पांच बरस से यहां (सोनपुर) का थानेदार है। मजिष्ट्रेट,-"टुम बड़ा गफ़लद किया, जो डूबटे हुए मुसाफ़िर का बख़्वी खबर नेई लिया। टुम अगर फिर ऐसा गफ़लट किया, टो काम से मुअट्टल होगा।" यो जमादार को झिड़ककर उन्होंने चौकीदारों की ओर घूम- कर कहा,-" पेटर कौन चौकीडार लाश को खेंचकर सूखे में रक्खा और ठाने पर खबर डिया?" उन चौकीदारों में से एक ने आगे बढ़ और मुककर सलाम कर के कहा,-" बंदे नेवाज ! इसी गुलाम ने।" मजिष्ट्रट,-"टुमारा नाम ?" चौकीदार,-" गंगाराम ।" मजिष्ट.-"टुम किटने डिनों से काम करटा है?" चौकीदार ' ताबेदार को १ करते बाज आठ बरस