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पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५१३

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४७४ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र। देखना पड़ेगा, कि टस धनवान मनुष्य की बुद्धि सचमुच श्रद्धायुक्त है या नहीं। और, इसका निर्णय करने के लिये, यदि स्वाभाविक रीति से किये गये धनदान के सिवा और कुछ सुबत न हो, तो इस दान की योग्यता किसी प्रद्धापूर्वक किये गये दान की योग्यता के बराबर नहीं समझी जाती और कुछ नहीं तो संदेह करने के लिये उचित कारण अवश्य रह जाता है । सब धर्म-अधर्म का विवेचन हो जाने पर महाभारत में यही यात एक आख्यान के स्वरूप में उत्तम रीति से समझाई गई है। जब युधिष्टिर राजगद्दी पा चुके, तब उन्होंने एक वृहत् अश्वमेध यज्ञ किया । उसमें अन और द्रव्य आदि के अपूर्व दान करने से और लाखो मनुष्यों के संतुष्ट होने से उनकी बहुत प्रशंसा होने लगी। उस समय वहाँ एक दिव्य नकुल (नवला) आया और युधिष्टिर से कहने लगा-" तुम्हारी व्ययं ही प्रशंसा की जाती है। पूर्वकाल में इसी कुरुक्षेत्र में एक दरिद्री ब्राह्मण रहता था जो उन्ह-वृत्ति से अर्थात् खेतों में गिरे हुए अनाज के दानों को चुन कर अपना जीवन निर्वाह किया करता था। एक दिन भोजन करने के समय उसके यहाँ एक अपरिचित आदमी नुधा से पीड़ित प्रतियि बन कर आ गया। वह दरिद्री ब्राह्मण और उसके कुटुम्योजन भी कई दिनों के भूखे थे; तो भी उसने अपने, अपनी स्त्री के और अपने लड़कों के सामने परोसा हुआ सब सत्तू उस तिथि को समर्पण कर दिया। इस प्रकार उसने जो अतिपिन्यज्ञ किया था, उसके महत्व की बरावरी तुम्हारा यज्ञ-चाई यह कितना ही बड़ा क्यों न हो कमी नहीं कर सकता" (ममा. अश्व.६०) । उस नेवले का मुँह और प्राधा शरीर सोने का था। उसने जो यह कहा, कि युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ की योग्यता उस गरीब ब्राह्मण द्वारा अतिथि को दिये गये सेर मर सव के वरायर भी नहीं है, इसका कारण उसने यह बतलाया है कि,-" उस ब्राह्मण के घर में अतिथि की जूठन पर लोटने से मेरा मुंह और आधा शरीर सोने का हो गया परन्तु युधिष्ठिर के यज्ञ-मंडर को जूझन पर लोटने से मेरा बचा हुआ आधाशरीर; सोने का नहीं हो सका! " यहाँ पर कर्म के याह्य परिणाम को ही देख कर यदि इसी बात का विचार करें, कि अधिकांश लोगों का अधिक सुख किसमें है। तो यही निर्णय करना पड़ेगा, कि एक अतिथि को तृप्त करने की अपेक्षा लाखों आद. मियों को तुम करने की योग्यता लाखगुना अधिक है। परन्तु प्रश्न यह है, कि केवल धर्म-दृष्टि से ही नहीं, किन्तु नीति-दृष्टि से भी, क्या यह निर्णय ठीक होगा? किसी को अधिक धन-सम्पत्ति मिल जाना या लोकोपयोगी अनेक अच्छे अच्छे काम करने का मौका मिल जाना केवल उसके सदाचार पर ही अवलंबित नहीं रहता है। यदि वह गरीय ब्राह्मण न्य के प्रभाव से बड़ा मारी यज्ञ नहीं कर सकता था, और इसलिये यदि उसने अपनी शक्ति के अनुसार कुछ अल्स और तुच्छ काम ही जिया, तो पा उसकी नैतिक या धार्मिक योग्यता कस समझी जायगी? कमी नहीं । यदि कम समझी जावे तो यही कहना पड़ेगा, कि गरीबों को धनवानों के