सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/१९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुराने समाजकी झांकी १६३ " is only among the Christian savages, who dwell at the gates of cities, that money is in use. The others will neither handle it nor even look upon it. They call it. the serpent of the white-men. They think it strange that some should possess more than others, and that those who have most should be more highly esteemed than those who have least. They neither quarrel nor fight among themselves; they neither rob nor speak ill of one another.” "बेशक रक्तवर्ण असभ्य लोगोमे जो परस्पर भ्रातृभाव पाया जाता है वह किसी हद्दतक इसीलिये है कि उन लोगोको अबतक 'मेरा और तेरा'का ज्ञान हई नही-वही 'मेरा' और 'तेरा', जिन्हे महात्मा जोन्क्रिसोस्तमोने 'ठडे शब्द' ऐसा कहा है। अनाथो, विधवानो एव कमजोरोकी रक्षा वे लोग जिस तरह करते है और जिस प्रशसनीय ढगसे वे लोग आगतुकोका आदर-सत्कार करते है वह उनकी नजरोमे इसीलिये अनिवार्य और स्वाभा- विक है कि उनका विश्वास है कि ससारकी सभी चीजे सभी लोगोकी है।" "स्वतत्र विचारक लहोतनने अपनी 'द्वितीय लहोतनकी समुद्रयात्रा' पुस्तकमें लिखा है कि असभ्य लोगोमे 'मेरे' और 'तेरे'का भेद होताही नहीं। क्योकि यह बात उनमे देखी जाती है कि जो चीज एककी है वहीं दूसरेकी भी है। जो असभ्य लोग क्रिस्तान हो गये हैं और हमारे शहरोके पास रहते है केवल उन्ही लोगोमे रुपये-पैसेका प्रचार पाया जाता है। शेष असभ्य न तो रुपया-पैसा छूते और न उनकी ओर ताकतेतक है। उन्हे यह वात विचित्र लगती है कि कुछ लोगोके पास ज्यादा चीजे होती है वनिस्वत औरोके, और जिनके पास ज्यादा है उनकी ज्यादा इज्जत होती है बनिस्बत कम रखने वालोके । वे असभ्य न तो आपसमे झगडते और १३ -